क्या बिहार में प्रचंड बहुमत से एनडीए की सरकार बनने वाली है?: प्रतुल शाहदेव
                                सारांश
Key Takeaways
- एनडीए को बिहार में प्रचंड बहुमत मिलने की संभावना है।
 - लोगों में उत्साह है, जो चुनावी रैलियों में स्पष्ट है।
 - महागठबंधन की स्थिति कमजोर दिख रही है।
 - नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार प्रगति कर रहा है।
 - गठबंधन में तालमेल की कमी है।
 
रांची, 4 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर मतदान के लिए चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण में है। प्रचार में वादे-इरादे और आरोप-प्रत्यारोप शामिल हैं। इसी क्रम में भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने बिहार में प्रचंड बहुमत से एनडीए सरकार बनने का दावा किया है।
प्रतुल शाहदेव ने मंगलवार को समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से विशेष बातचीत में कहा, "121 सीटों के लिए चुनाव प्रचार आज शाम समाप्त होने वाला है। हम अपने स्पष्ट बहुमत के लक्ष्य का लगभग 70 प्रतिशत हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। बिहार में एनडीए को लेकर लोगों में उत्साह है, जो प्रधानमंत्री की रैलियों, हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यक्रमों और नीतीश कुमार की सभाओं में स्पष्ट दिखाई दे रहा है।"
उन्होंने कहा कि यहां लोगों में उत्साह का माहौल है। इस उत्साह को देखते हुए कहा जा सकता है कि बिहार की जनता तेजस्वी यादव को सत्ता में नहीं आने देगी। बिहार की जनता को जंगलराज की याद अभी भी है और जब इनके पिता लालू यादव सत्ता में थे तब बिहार की स्थिति कैसी थी, लोग आज वह दिन याद करके डर जाते हैं।
प्रतुल शाहदेव ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार प्रगति कर रहा है। लोग सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। हम पहले चरण में ही दो तिहाई सीटें जीतने की उम्मीद कर रहे हैं। महागठबंधन को भी यह एहसास हो गया है कि उनकी सरकार बनने वाली नहीं है।
झारखंड में झामुमो गठबंधन की समीक्षा को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू के बयान पर भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा, "प्रदीप बलमुचू एक वरिष्ठ नेता हैं और जब वह झामुमो के साथ किसी समझौते पर सवाल उठाते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि झारखंड में महागठंधन में शामिल दलों में तालमेल की कमी है।"
उन्होंने कहा कि बिहार में गठबंधन के दलों की विचारधारा में असंगतता है, जिसके कारण लोगों में संवाद नहीं बन पा रहा है। ये लोग केवल सत्ता में बने रहने के लिए एक मंच पर आते हैं, लेकिन जनता के हित की बात कभी नहीं करते। उन्हें यह नहीं पता कि इस तरह शासन करना लंबे समय तक संभव नहीं है।