क्या कामिनी कौशल का निधन 98 साल की उम्र में हुआ?
सारांश
Key Takeaways
- कामिनी कौशल का जन्म 24 फरवरी 1927 को लाहौर में हुआ।
- उन्होंने 1946 में फिल्म 'नीचा नगर' से करियर की शुरुआत की।
- उनकी फिल्म ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार जीता।
- उन्होंने कई प्रमुख सितारों के साथ काम किया।
- उनका निधन भारतीय सिनेमा के लिए एक बड़ी क्षति है।
मुंबई, 14 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री कामिनी कौशल का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन की जानकारी उनके परिवार के करीबी मित्र ने साझा की। अपने लंबे और सफल करियर के दौरान उन्होंने सादगी, प्रतिभा और मजबूत अभिनय से दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी।
कामिनी कौशल का जन्म 24 फरवरी 1927 को लाहौर में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में डिग्री प्राप्त की थी और उन्हें कला और रचनात्मकता में गहरी रुचि थी। इसके साथ ही, उन्हें घुड़सवारी, पेंटिंग और भरतनाट्यम में भी महारत हासिल थी।
उन्होंने 1946 में ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के साथ अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की, उनकी पहली फिल्म 'नीचा नगर' थी। यह फिल्म सामाजिक असमानता और गरीब-अमीर के संघर्ष पर आधारित थी, जिसने कान्स फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार जीता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान पाने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी।
कामिनी कौशल ने इस फिल्म में न केवल अपनी अभिनय क्षमता को साबित किया, बल्कि भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई। इसके बाद उन्होंने कई यादगार फिल्मों में काम किया, जैसे कि 'शहीद', 'नदिया के पार', 'शबनम', 'आरजू', 'बिराज बहू', 'दो भाई', 'जिद्दी', 'पारस', 'नमूना', 'आबरू', 'बड़े सरकार', 'जेलर', और 'नाइट क्लब'।
कामिनी कौशल ने दिलीप कुमार और राज कपूर जैसे कई बड़े सितारों के साथ भी काम किया। उन्होंने 2019 में शाहिद कपूर और कियारा आडवाणी की फिल्म 'कबीर सिंह' में शाहिद की दादी का किरदार निभाया था। इसके बाद 2022 में आमिर खान और करीना कपूर की फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' में उनका किरदार दर्शकों के दिलों को छू गया।
कामिनी कौशल का निजी जीवन भी चर्चा का विषय रहा है। उन्हें दिलीप कुमार के साथ उनके शुरुआती दिनों का रोमांस भी याद किया जाता है, हालांकि परिवार की जिम्मेदारियों के कारण यह रिश्ता आगे नहीं बढ़ सका।
कामिनी कौशल के निधन से बॉलीवुड और भारतीय सिनेमा के प्रेमियों में गहरा शोक है। उनका जाना न केवल एक कलाकार की कमी है, बल्कि उस युग का भी अंत है जिसने भारतीय फिल्मों को अपनी अनूठी शैली, सादगी और कला के माध्यम से परिभाषित किया।