क्या बांग्लादेश में भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली संस्थाएं नकल के जाल में फंसी हैं?
सारांश
Key Takeaways
- भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
- राजनीतिक दखल ने निगरानी संस्थाओं को कमजोर किया है।
- सुधारों के लिए सोच में बदलाव की आवश्यकता है।
- मतदाताओं को ईमानदारी की मांग करनी चाहिए।
- गिलगमेश की समस्या सांस्कृतिक और संस्थागत दोनों स्तरों पर है।
ढाका, 2 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। फरवरी 2026 के चुनाव की दिशा में बढ़ते बांग्लादेश में, भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। जिन संस्थाओं को ज्यादतियों पर नजर रखनी थी, वे अब उन्हीं के तरीके अपनाते दिखाई दे रहे हैं। इस पर एक मीडिया रिपोर्ट ने प्रकाश डाला है।
द वर्ल्ड बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री जाहिद हुसैन ने द बिजनेस स्टैंडर्ड के एक लेख में कहा, "भ्रष्टाचार से निपटने के लिए 2004 में स्थापित एंटी-करप्शन कमीशन अब एक मजाक बन चुका है। 2013 में एक संशोधन के बाद, अधिकारियों की जांच के लिए सरकार की अनुमति आवश्यक हो गई, जिसके परिणामस्वरूप एसीसी को एक पालतू कुत्ता माना जाने लगा।"
हुसैन ने इसे बांग्लादेश की गिलगमेश समस्या करार देते हुए कहा कि आयोग कभी-कभी ही कार्य करता है, और वो भी तब जब उसे अनुमति मिलती है - और कभी भी प्रभावशाली व्यक्तियों पर नहीं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि एसीसी, संसद और बांग्लादेश बैंक जैसे निगरानी निकायों में राजनीतिक दखल बढ़ रहा है। संसद, जो कार्यपालिका की निगरानी का अधिकार रखती है, अब रीति-रिवाजों का मंच बन गई है।
रिपोर्ट ने व्यवस्था की आलोचना की है। लिखा गया है कि बजट सत्र बिना किसी जांच के पास हो जाते हैं। समितियां स्वाभाविक रूप से खराब कार्य करती हैं। विपक्ष की आवाज या तो अदृश्य हैं या केवल दिखावे के लिए हैं। संसद गिलगमेश की नकल कर रही है, लेकिन शक्ति का प्रयोग करके नहीं, बल्कि उसकी ध्वनि बनकर।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश बैंक, जो कभी वित्तीय ईमानदारी का प्रतीक था, अब राजनीतिक प्रभाव में आ गया है। 2013 में, इसने सत्ता के निकटता के आधार पर नौ नए बैंकों को मंजूरी दी।
हुसैन ने लिखा, 2025 की एसीसी जांच में तीन पूर्व गवर्नरों को बड़े वित्तीय घोटालों में फंसाया गया, जिसमें हॉलमार्क घोटाला और रिजर्व चोरी शामिल हैं।
गिलगमेश की समस्या केवल औपचारिक संस्थानों तक सीमित नहीं है। पेशेवर, मीडिया और सिविल सोसाइटी भी इससे प्रभावित हैं। कई लोग सुधार के इरादे से सार्वजनिक जीवन में आते हैं, लेकिन पहुंच, प्रतिष्ठा और सत्ता के लालच में फंस जाते हैं।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि नीतिगत संक्षेप अब समर्थन बन जाते हैं। चुप्पी एक रणनीति बन जाती है। नागरिक प्रतिरोध की ज्वाला को अपनेपन के लालच से शांत कर दिया जाता है।
हुसैन ने कहा कि यह एक नकल का खेल है। निगरानी अब प्रदर्शन बन गई है। प्रतिरोध एक अनुष्ठान बन गया है। सुधारक अब नकलची बन चुके हैं। सिस्टम असहमति को कुचलता नहीं है - इसे अपने में समाहित कर लेता है।
रिपोर्ट ने सुधार के लिए सोच में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया है। इसमें लिखा है, "गिलगमेश के जाल से बचने के लिए केवल तकनीकी सुधार नहीं बल्कि अन्य उपायों की भी आवश्यकता है। हां, हमें कार्यकाल की सीमा, रोटेटिंग नेतृत्व और डिजिटल पारदर्शिता की आवश्यकता है।"
जैसे-जैसे बांग्लादेश फरवरी 2026 के चुनावों के करीब आता है, मतदाताओं को एक ऐसे सिस्टम की मांग करनी चाहिए जो ईमानदारी को महत्व देता हो, न कि केवल दिखावे को।