क्या पाकिस्तान में एक पादरी की हत्या ने ईसाई समुदाय की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है?
सारांश
Key Takeaways
- पादरी कामरान की हत्या ने धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं।
- मानवाधिकार संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना असुरक्षा का प्रतीक है।
- स्थानीय प्रशासन की उदासीनता से न्याय की उम्मीद कम है।
- ईसाई समुदाय पहले से ही हिंसा के साए में जी रहा है।
- यह हत्या एक बढ़ते पैटर्न का हिस्सा है।
इस्लामाबाद, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। एक प्रमुख मानवाधिकार संगठन ने मंगलवार को एक पादरी की हत्या पर गहरी चिंता व्यक्त की है। यह घटना दो महीने पहले उस पर हुए असफल हत्या प्रयास के बाद हुई, जो पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की असुरक्षा को उजागर करती है।
द वॉयस ऑफ पाकिस्तान माइनॉरिटी (वीओपीएम) के अनुसार, 5 दिसंबर को उनके साथ हमला किया गया था। यह हमला तब हुआ जब पास्टर कामरान अपनी बेटी को कॉलेज छोड़ने के लिए निकल रहे थे।
संगठन ने बताया कि जब पास्टर अपनी कार की तरफ बढ़ रहे थे, तब बाइक पर सवार बदमाशों ने अचानक उन पर नजदीकी से कई गोलियां चलाईं। उन्हें तुरंत पंजाब प्रांत के गुजरांवाला के जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया।
मानवाधिकार संगठन के अनुसार, इस घटना के बाद पूरे ईसाई समुदाय में सदमा है। पास्टर अपने पीछे पत्नी सल्मिना और तीन बच्चों को छोड़ गए हैं।
वीओपीएम ने कहा कि यह घटना इस लिए भी बेहद दुखद है क्योंकि पास्टर ने अपना जीवन मानवता की सेवा में समर्पित किया। अक्टूबर में उनके साथ भी हिंसा हुई थी। दो महीने पहले इस्लामाबाद में कुछ कट्टरपंथियों ने उन पर गोलीबारी की थी। उस समय वे घायल हुए थे लेकिन बच गए थे।
संगठन ने कहा, “इस बेरहम हत्या ने पाकिस्तान के ईसाइयों को और भी खौफजदा कर दिया है। यह समुदाय पहले से ही हिंसा के साए में जी रहा है। पास्टर कामरान की मौत कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि उनके जैसे लोगों पर हमलों के बढ़ते पैटर्न का हिस्सा है जो विपरीत परिस्थितियों में अपने विश्वास के लिए खड़े होने की हिम्मत जुटाते हैं। उनके परिवार ने जो दर्द और नुकसान महसूस किया है, वह उन्हें जानने वाले समुदायों के दिलों में गूंज रहा है।”
मानवाधिकार संगठन का कहना है कि हालांकि पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन स्थानीय प्रशासन की उदासीनता से न्याय की उम्मीद कम है।
उन्होंने आगे कहा, “पास्टर कामरान की हत्या यह दर्शाती है कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक हाशिए पर हैं और इन घिनौने कामों के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा न दिया जाना इस समाज की बेबसी का संकेत है।”