क्या 22 सालों बाद संस्कृत का फिर से राज हुआ? भद्रेशदास स्वामी को मिला सरस्वती सम्मान 2024

सारांश
Key Takeaways
- भद्रेशदास स्वामी को सरस्वती सम्मान 2024 से सम्मानित किया गया।
- यह पुरस्कार संस्कृत की महत्ता को दर्शाता है।
- यह सम्मान 22 वर्षों के बाद किसी साधु को दिया गया है।
- सरस्वती सम्मान का इतिहास 1991 से है।
- यह पुरस्कार 15 लाख रुपए के साथ आता है।
अहमदाबाद, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। एक ऐतिहासिक पल में बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के प्रख्यात विद्वान-संत महामहोपाध्याय भद्रेशदास स्वामी को केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा उनकी अद्भुत संस्कृत कृति स्वामीनारायण सिद्धांत सुधा (2022) के लिए देश के प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान 2024 से नवाजा गया।
यह पुरस्कार के इतिहास में पहली बार है जब किसी साधु को यह सम्मान दिया गया है, और 22 वर्षों में यह सम्मान प्राप्त करने वाली पहली संस्कृत कृति है। शाहीबाग स्थित बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में आयोजित भव्य समारोह में राज्यपाल आचार्य देवव्रत, न्यायमूर्ति अर्जन कुमार सीकरी (चयन समिति के अध्यक्ष), विश्वविद्यालय के कुलपतियों और हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।
न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा, "22 भाषाओं में रचित कृतियों में यह पुस्तक अद्वितीय है। भद्रेशदास स्वामी को सम्मानित करके ऐसा लगता है मानो पुरस्कार से ही सम्मानित हो गया हो।"
भद्रेशदास स्वामी ने अपने गुरु प्रमुख स्वामी महाराज और महंत स्वामी महाराज को पुरस्कार समर्पित करते हुए विनम्रतापूर्वक कहा, "यह मेरी उपलब्धि नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण हेतु एक पवित्र दायित्व है।"
वरिष्ठ बीएपीएस संत पूज्य ब्रह्मविहारीदास स्वामी ने इस बात पर जोर दिया, "यह सम्मान भारत के संपूर्ण संत समाज का उत्थान करता है। इसका प्रभाव केवल साहित्यिक ही नहीं, बल्कि सभ्यतागत भी है।"
1991 में स्थापित सरस्वती सम्मान भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जो 22 भारतीय भाषाओं में से किसी भी भाषा में उत्कृष्ट कृतियों के लिए प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। इसमें एक प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह और 15 लाख रुपए का पुरस्कार शामिल है।
स्वामीनारायण सिद्धांत सुधा अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन को शुद्ध संस्कृत शैली में प्रस्तुत करता है, जो समानता, ज्ञान और मुक्ति के मूल्यों को बढ़ावा देता है।
यह उपलब्धि भारत के आध्यात्मिक साहित्य को विश्व मंच पर स्थापित करती है और संस्कृत ज्ञान की शाश्वत शक्ति की पुष्टि करती है।
सरस्वती सम्मान सिर्फ एक पुरस्कार नहीं है, यह भारत की सांस्कृतिक गहराई, साहित्यिक उत्कृष्टता और सभ्यतागत गौरव का प्रतीक है। यह पुरस्कार 1991 में केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा स्थापित किया गया था और आज यह देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मानों में गिना जाता है।