क्या पूर्व आईएएस प्रदीप निरंकारनाथ शर्मा पीएमएलए केस में दोषी करार दिए गए?
सारांश
Key Takeaways
- पूर्व आईएएस प्रदीप निरंकरनाथ शर्मा को 5 साल की सजा मिली।
- ईडी ने कई एफआईआरों के आधार पर मामले की जांच की।
- भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकेत।
- अदालत ने राहत की याचिका को खारिज किया।
- गुजरात सरकार को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ।
अहमदाबाद, 7 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में पूर्व आईएएस प्रदीप निरंकरनाथ शर्मा को विशेष अदालत ने दोषी करार देते हुए 5 साल की कठोर कारावास और 50 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। अहमदाबाद स्थित पीएमएलए की विशेष अदालत ने शनिवार को यह फैसला सुनाया। मामला पीएमएलए केस नंबर 02/2016 और 18/2018 से संबंधित है।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपनी जांच की शुरुआत उन अनेक एफआईआरों के आधार पर की थी, जो गुजरात के अलग-अलग थाना क्षेत्रों में दर्ज हुई थीं। इनमें 31 मार्च 2010 को दर्ज एफआईआर नंबर 03/2010, 25 सितंबर 2010 की एफआईआर नंबर 09/2010 (सीआईडी क्राइम, राजकोट जोन) और 30 सितंबर 2014 को एसीबी, भुज द्वारा दर्ज एफआईआर नंबर 06/2014 शामिल थीं। इन मामलों में भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गंभीर आरोप लगाए गए थे।
जांच के अनुसार, जब प्रदीप निरंकरनाथ शर्मा भुज (कच्छ) के जिलाधिकारी थे, तब उन्होंने अन्य लोगों के साथ मिलकर सरकारी भूमि को अधिकार सीमा से बाहर जाकर कम दरों पर आवंटित किया। इस साजिश के कारण गुजरात सरकार को 1,20,30,824 रुपए का नुकसान हुआ। वहीं, आरोपियों ने इस मामले में अवैध आर्थिक लाभ अर्जित किए थे। ईडी ने इस धन को अपराध से जुड़ा अवैध लाभ बताया, जो मनी लॉन्ड्रिंग के दायरे में आता है।
आरोपी द्वारा दायर डिस्चार्ज आवेदन पहले ही खारिज किया जा चुका था। बाद में, उच्चतम न्यायालय ने भी आरोपी की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मनी लॉन्ड्रिंग कोई एकबारगी अपराध नहीं, बल्कि तब तक जारी रहने वाला अपराध है जब तक अवैध रूप से अर्जित धन रखा, वैध दिखाया या आर्थिक प्रणाली में पुनः प्रविष्ट कराया जाता है। अदालत ने माना कि इस आधार पर आरोपी की दलीलें स्वीकार्य नहीं हैं और उच्च न्यायालय का फैसला सही था जिसने ट्रायल को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश दिया था।
विशेष अदालत ने इस मामले में शर्मा को पीएमएलए की धारा 3 के तहत दोषी मानते हुए पांच वर्ष की कठोर कैद और 50 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना अदा न करने की स्थिति में तीन महीने के साधारण कारावास का आदेश भी दिया गया। इसके साथ ही अदालत ने 1.32 करोड़ रुपए मूल्य की उन संपत्तियों की जब्ती का आदेश दिया, जिन्हें जांच के दौरान ईडी ने अटैच किया था।
अदालत ने आरोपी की उस प्रार्थना को भी सख्ती से खारिज कर दिया जिसमें उसने अनुरोध किया था कि उसकी यह सजा पिछली सजा के साथ समानांतर रूप से चलनी चाहिए। अदालत ने टिप्पणी की कि एक आईएएस अधिकारी होने के बावजूद आरोपी ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे अपराध किए, इसलिए उसे किसी प्रकार की विशेष राहत दिए जाने का कोई आधार नहीं बनता। अदालत ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम दोनों अलग उद्देश्य के लिए बने कानून हैं और जब आरोपी दोनों में दोषी पाया गया है, तो सजा को एक साथ चलाने का कोई औचित्य नहीं है।
ईडी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि यह निर्णय भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के संकल्प को और मजबूत करता है। मामले की आगे की कार्रवाई प्रक्रिया के अनुसार जारी रहेगी।