क्या आशीष शेलार पालक मंत्री होते हुए भी बीएमसी चुनाव कराने में विफल रहे? : आनंद दुबे

सारांश
Key Takeaways
- आशीष शेलार की बीएमसी चुनाव में विफलता
- आनंद दुबे का स्पष्ट बयान
- राजनाथ सिंह की आतंकवाद पर निष्क्रियता
- कांग्रेस में थरूर और खड़गे के बीच मतभेद
- मालेगांव चुनाव में अजित पवार की जीत
मुंबई, 26 जून (राष्ट्र प्रेस)। महाराष्ट्र के मंत्री आशीष शेलार ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) पर छह महीने में 2.5 लाख चूहों को मारने के मामले में प्रश्न उठाए हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना (यूबीटी) प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा कि वह पालक मंत्री होते हुए भी बीएमसी चुनाव करवाने में सफल नहीं हो सके हैं। उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की आलोचना करते हुए कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले के दो माह बाद भी हमलावर नहीं पकड़े गए।
आनंद दुबे ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से संवाद करते हुए कहा कि आशीष शेलार ने बीएमसी चुनाव कराने में विफलताप्रशासन आपके अधीन है। विपक्ष पर दोषारोपण करना उचित नहीं है, जब भ्रष्टाचार की जांच आपके ही अधिकारी करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने चार माह में चुनाव कराने का आदेश दिया था, लेकिन परिसीमन अब तक अधूरा है। उन्होंने मजाक करते हुए कहा कि भाजपा चुनाव से डरती है, इसलिए विपक्ष पर आरोप लगाती है। अपनी गलतियों को छिपाने के लिए पुरानी सरकारों को कोसना बंद करें।"
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के आतंकवाद के खिलाफ बर्दाश्त न करने के बयान पर उन्होंने कहा कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले को दो महीने हो गए हैं, लेकिन हमलावर अब तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं। रक्षा मंत्री को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन वह निष्क्रिय दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा में लोकतंत्र नहीं, बल्कि 'राजा तंत्र' है, जहां बड़े और छोटे राजा फैसले लेते हैं। रक्षा मंत्री पूरे देश के होते हैं, न कि सिर्फ पार्टी के। प्रवक्ता ने आग्रह किया कि राजनाथ सिंह देशहित में कार्य करें और प्रधानमंत्री को भी देश की सुरक्षा पर सख्त सलाह दें।
कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं शशि थरूर और खड़गे के बीच जुबानी जंग पर आनंद दुबे ने कहा कि दोनों ही वरिष्ठ और समकक्ष नेता हैं। थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था, वह हारने के बावजूद आज भी प्रभावशाली नेता हैं। कांग्रेस में मतभेद हैं, मनभेद नहीं, जबकि भाजपा में गुलामी की संस्कृति है, जहां जे.पी. नड्डा जैसे नेता केवल दिखावे के लिए हैं। थरूर और खड़गे लोकतांत्रिक तरीके से विचार रख सकते हैं, यही लोकतंत्र की विशेषता है। प्रवक्ता ने कहा कि थरूर लोकप्रिय नेता हैं और कांग्रेस ने उन्हें बहुत कुछ दिया है, आशा है कि वह पार्टी का सम्मान बनाए रखेंगे।
मालेगांव शुगर फैक्ट्री चुनाव में भतीजे अजित पवार की एकतरफा जीत हुई जबकि शरद पवार का सूपड़ा साफ हो गया। चाचा शरद पवार के लिए अपने ही गढ़ में यह एक बड़ा झटका है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आनंद दुबे ने कहा कि राजनीति और सामाजिक जीवन में जीत और हार होती है। शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता ने अजित पवार को राजनीति की शिक्षा दी, उंगली पकड़कर सिखाया। हो सकता है अजित ने उनसे कुछ अधिक ही सीख लिया हो। कभी-कभी शिष्य गुरु से आगे निकल जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि गुरु की योग्यता समाप्त हो जाती है।