क्या औंधा नागनाथ मंदिर हिंदू-सिख आस्था का अद्वितीय संगम है?
सारांश
Key Takeaways
- औंधा नागनाथ मंदिर का संबंध पांडवों से है।
- यह मंदिर हिंदू और सिख धर्म के बीच एकता का प्रतीक है।
- गुफा में दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- मंदिर परिसर में १२ ज्योतिर्लिंगों के छोटे मंदिर भी हैं।
- नामदेव की कथा इस मंदिर के महत्व को और बढ़ाती है।
नई दिल्ली, २५ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। शिव महापुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में १२ ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख किया गया है, जो देश के विभिन्न राज्यों में स्थित हैं।
महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में एक अद्वितीय औंधा (उल्टा) नागनाथ मंदिर है, जो केवल हिंदू धर्म की आस्था को ही नहीं, बल्कि इसका गहरा संबंध सिख धर्म से भी है। हिंदू और सिख, दोनों ही इस मंदिर में श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं।
हिंगोली जिले के मराठवाड़ा में स्थित भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर औंधा (उल्टा) नागनाथ मंदिर है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का एक चांदी से ढका शिवलिंग है, जिसके दर्शन के लिए हिंदू और सिख दोनों धर्म के भक्त आते हैं।
मंदिर के गर्भगृह में एक संकरी गुफा भी है, जिसमें एक बार में केवल एक ही भक्त प्रवेश कर सकता है। गुफा के अंदर जाने के लिए रस्सी का सहारा लिया जाता है। कहा जाता है कि इस गुफा से होकर जो भी बाबा नागनाथ के दर्शन करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर परिसर में अन्य ज्योतिर्लिंगों के लिए समर्पित १२ छोटे मंदिर, १०८ अन्य देवी-देवताओं के लिए छोटे मंदिर और ६८ तीर्थस्थल भी हैं, जो एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। अपने अज्ञातवास के दौरान, पांडवों ने यहाँ कुछ समय बिताया था। पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों की गाय पास की नदी में जाकर पानी पीती थी और वहीं अपना दूध बहा देती थी। जब पांडवों ने यह चमत्कार देखा, तो धर्मराज युधिष्ठिर को आभास हुआ कि आस-पास कोई दिव्य शक्ति है। खोजने पर उन्हें नागनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन हुए और उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की।
इस मंदिर का उल्लेख ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में भी मिलता है, जिसमें भक्त नामदेव की कथा प्रचलित है। नामदेव भगवान शिव के बड़े भक्त थे। वे मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए जाते थे लेकिन नीची जाति का होने के कारण पुजारी उन्हें बाहर निकाल देते थे। एक दिन नामदेव दुखी होकर भगवान से प्रार्थना करने लगे कि क्यों उन्हें ऐसी जाति में जन्म दिया गया। भगवान शिव ने उनकी पुकार सुनकर मंदिर का मुंह उस दिशा में कर दिया, जहां नामदेव बैठकर पूजा कर रहे थे। तब से यह मंदिर सिख धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन गया है।