क्या बालाजी बाजीराव ने दिल्ली से अटक तक साम्राज्य फैलाया?

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क्या बालाजी बाजीराव ने दिल्ली से अटक तक साम्राज्य फैलाया?

सारांश

8 दिसंबर को बालाजी बाजीराव की जयंती मनाई जाती है। वे मराठा साम्राज्य के स्वर्णिम युग के निर्माता रहे हैं। उनके नेतृत्व में साम्राज्य का क्षेत्रफल 2.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक फैला। जानें उनकी उपलब्धियों और विवादों के बारे में।

Key Takeaways

  • बालाजी बाजीराव ने मराठा साम्राज्य का क्षेत्रफल बढ़ाया।
  • उन्होंने पुणे को राजधानी बनाया और शनिवारवाड़ा का निर्माण किया।
  • उनके नेतृत्व में मराठा सेना ने कई महत्वपूर्ण विजय प्राप्त की।
  • उनकी मृत्यु के बाद मराठा संघ में विघटन हुआ।
  • आज भी उन्हें महाराज के रूप में याद किया जाता है।

पुणे, 7 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केवल 19 वर्ष की आयु में अपने पिता बाजीराव प्रथम के निधन के बाद पेशवा पद ग्रहण करने वाले नानासाहेब पेशवा, जिन्हें बालाजी बाजीराव के नाम से भी जाना जाता है, की 8 दिसंबर को जयंती है। वे मराठा इतिहास के सबसे प्रसिद्ध और विवादास्पद पेशवाओं में से एक रहे हैं, जिन्हें मराठा साम्राज्य के स्वर्णिम युग का निर्माणकर्ता माना जाता है।

इतिहासकारों द्वारा बालाजी बाजीराव को 'मराठा साम्राज्य का वास्तविक सम्राट' कहा गया है। उन्होंने एक विशाल लेकिन अस्थिर साम्राज्य विरासत में पाया था। उनके पिता, बाजीराव बल्लाल, ने मालवा, बुंदेलखंड और गुजरात में मराठा ध्वज फहराया था, लेकिन उत्तर भारत में मुगलों का साम्राज्य हावी था। नानासाहेब ने आंतरिक एकता पर ध्यान केंद्रित करते हुए सदाशिवराव भाऊ, मल्हारराव होल्कर, जनकोजी शिंदे और रघुजी भोसले जैसे महत्वपूर्ण सरदारों को एकत्र किया।

बालाजी बाजीराव के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य का अभूतपूर्व विस्तार हुआ। इस अवधि में, साम्राज्य का क्षेत्रफल लगभग 2.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गया था। दिल्ली के मुगल दरबार में मराठों की शक्ति का डंका बजने लगा। 1752 में, उन्होंने मुगल बादशाह अहमद शाह से एक संधि की, जिसमें उन्हें पश्चिमी भारत में चौथ और सारदेशमुखी वसूलने का अधिकार प्राप्त हुआ। 1758 में, मराठों ने दिल्ली पर विजय प्राप्त की और अपनी सेना पंजाब तक भेजी। इस दौरान अटक तक मराठा ध्वज लहराया गया। कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा और बंगाल में भी मराठा सेनाएं चौथ वसूलने पहुंचती थीं।

नानासाहेब ने पुणे को मराठों की राजधानी बनाते हुए शनिवारवाड़ा को भव्य महल में परिवर्तित किया। आज भी शनिवारवाड़ा उनके वैभव का प्रतीक है। उन्होंने मराठी को राजकीय भाषा के रूप में स्थापित किया और संस्कृत एवं मोदी लिपि को प्रोत्साहित किया। पेशवा दरबार में दामोदर पंत, नारायण दीक्षित और रामशास्त्री जैसे विद्वानों को नियुक्त किया गया। कर प्रणाली को व्यवस्थित किया गया और किसानों को राहत दी गई।

बालाजी बाजीराव का सबसे बड़ा दुर्भाग्य 14 जनवरी 1761 को हुआ, जब तीसरा पानीपत युद्ध लड़ा गया। सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में 80 हजार मराठा सैनिकों ने अहमद शाह अब्दाली का सामना किया, जिसमें मराठा सेना पराजित हो गई। विश्वासराव पेशवा (नानासाहेब के सबसे बड़े पुत्र), सदाशिवराव भाऊ और हजारों मराठा सरदार मारे गए। जब यह दुखद समाचार पुणे पहुंचा, तो 23 जून 1761 को केवल 40 वर्ष की आयु में गहरे शोक में बालाजी बाजीराव का निधन हो गया। इसे मराठा इतिहास में 'पेशवा का शोकांत' कहा जाता है।

हालांकि बाजीराव को लेकर कई विवाद हैं। कई इतिहासकार नानासाहेब को पानीपत की पराजय के लिए जिम्मेदार मानते हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने भाऊ को सेना का पूर्ण कमान देकर स्वयं पुणे में रहना पसंद किया। इसके अलावा, उत्तर भारत में मराठा अत्याचारों और चौथ वसूली के कारण स्थानीय जनता में असंतोष बढ़ गया था, जिसका फायदा अब्दाली को मिला।

फिर भी यह निर्विवाद है कि बालाजी बाजीराव ने बाजीराव प्रथम के सपने को साकार किया। उनके शासन काल में मराठा साम्राज्य हिंदुस्तान का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया था। उनकी मृत्यु के बाद मराठा संघ टूटने लगा और अंततः 1818 में अंग्रेजों ने इसे समाप्त कर दिया। आज भी मराठा समाज में नानासाहेब पेशवा को 'महाराज' के रूप में याद किया जाता है।

Point of View

बालाजी बाजीराव का योगदान भारतीय इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने मराठा साम्राज्य को एक नई दिशा देने का कार्य किया और भारतीय राजनीति में अपनी उपस्थिति को मजबूती से स्थापित किया। उनकी नीतियों और निर्णयों का प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है।
NationPress
07/12/2025

Frequently Asked Questions

बालाजी बाजीराव की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थीं?
उनकी प्रमुख उपलब्धियों में साम्राज्य का विस्तार, आंतरिक एकता स्थापित करना और मराठी को राजकीय भाषा बनाना शामिल है।
तीसरा पानीपत युद्ध में बालाजी बाजीराव की भूमिका क्या थी?
बालाजी बाजीराव ने इस युद्ध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए, लेकिन युद्ध की हार के बाद उनका जीवन दुखद रहा।
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