क्या बनारसी साड़ी की परंपरा और वैश्विक पहचान को बढ़ावा देने के लिए अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह महत्वपूर्ण है?

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क्या बनारसी साड़ी की परंपरा और वैश्विक पहचान को बढ़ावा देने के लिए अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह महत्वपूर्ण है?

सारांश

अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह के दौरान बनारसी साड़ी की समृद्ध परंपरा और उसकी वैश्विक पहचान को समझना जरूरी है। जानें कैसे यह हस्तशिल्प न केवल रोजगार सृजन करता है, बल्कि भारतीय संस्कृति की धरोहर को भी संजोता है।

Key Takeaways

  • बनारसी साड़ी भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।
  • अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह का आयोजन हर वर्ष होता है।
  • बनारसी साड़ी को जीआई टैग प्राप्त है।
  • स्थानीय कारीगरों के लिए यह रोजगार का मुख्य स्रोत है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने हस्तशिल्प की बिक्री में वृद्धि की है।

वाराणसी, १३ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। काशी, जिसे वाराणसी भी कहा जाता है, भारत के प्रमुख हस्तशिल्प केंद्रों में से एक है। इस शहर को विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ी के लिए जाना जाता है, जो अपनी भव्यता और बारीक कारीगरी के लिए भारत और समस्त विश्व में प्रशंसा प्राप्त करती है। अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह ८ से १४ दिसंबर तक मनाया जाता है, और इस अवसर पर हम बनारसी साड़ी और इसकी बुनाई की विशेषताओं पर गौर करेंगे।

बनारसी साड़ी को जीआई (भौगोलिक संकेतक) टैग प्राप्त हुआ है, जो इसकी प्रामाणिकता और विशिष्टता की पुष्टि करता है। इसके अलावा, वाराणसी काशी ब्रासवेयर, कॉपरवेयर, ग्लास बैंगल्स, लकड़ी-पत्थर-मिट्टी के खिलौने और आभूषण के लिए भी प्रसिद्ध है। इन पारंपरिक कलाओं ने न केवल रोजगार सृजन किया है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी समृद्ध किया है।

वाराणसी के हस्तशिल्प में बनारसी साड़ी को एक विशेष स्थान प्राप्त है, जिसका इतिहास सदियों पुराना है। भारतीय साड़ियों का उल्लेख रामायण काल से मिलता है, किंतु बनारसी ब्रोकेड की शुरुआत मुगल काल में हुई। मुगलों ने फारसी प्रभाव के साथ जरी और बारीक बुनाई की कला को आगे बढ़ाया। आज की बनारसी साड़ियां मुगल और भारतीय डिजाइनों का अद्भुत मिश्रण हैं। इनमें सोने-चांदी की जरी से फूल-पत्तियां, मोर, आम, हाथी-घोड़े, कलगा, बेल और जाली जैसे जटिल पैटर्न बुने जाते हैं।

कधवा बुनाई से तैयार साड़ियां भी बहुत लोकप्रिय हैं। पारंपरिक हथकरघे पर बुनाई को 'कधवा' या 'ब्रोकेड' तकनीक कहा जाता है, जिसमें मोटिफ उभरे हुए नजर आते हैं। बढ़ती मांग के कारण अब पावर लूम का भी उपयोग किया जा रहा है, लेकिन हाथ से बनी साड़ियां आज भी सबसे कीमती और सुंदर मानी जाती हैं।

वाराणसी का एमएसएमई क्षेत्र इन पारंपरिक शिल्पों पर आधारित है। यहां कई छोटे उद्यम और कारीगर बनारसी साड़ी, कालीन और खिलौने बनाते हैं, जो स्थानीय परंपरा और आधुनिक डिजाइनों का सुंदर संगम प्रस्तुत करते हैं। बनारसी साड़ियों की देश-विदेश में भारी मांग है।

उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट पर भी बनारसी साड़ी की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है, जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है।

हस्तशिल्प न केवल वाराणसी बल्कि पूरे भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के अनुसार, देश में सात मिलियन से अधिक कारीगर इस क्षेत्र में कार्यरत हैं, जिनमें 56 प्रतिशत महिलाएं हैं। 744 हस्तशिल्प क्लस्टर हैं, जहां 2 लाख से अधिक कारीगर काम करते हैं और 30 हजार से अधिक उत्पाद बनते हैं। वाराणसी के साथ ही सूरत, आगरा, लखनऊ, सुल्तानपुर और भदोही प्रमुख केंद्र हैं।

स्थानीय उद्यमी डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपने उत्पादों को वैश्विक बाजार तक पहुंचा रहे हैं। ऑनलाइन पोर्टल पर हस्तशिल्प की उपलब्धता बढ़ने से बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

पर्यटन के विकास ने भी हस्तशिल्प को नई गति दी है। वाराणसी आने वाले पर्यटक बनारसी साड़ी, कालीन और अन्य स्मृति चिन्ह खरीदकर स्थानीय कारीगरों को लाभ पहुंचाते हैं। घरेलू सजावट, उपहार और निर्यात बाजार में भी मांग लगातार बढ़ रही है। यह क्षेत्र आर्थिक रूप से मजबूत है।

Point of View

बल्कि उन्हें वैश्विक पहचान भी दिलाते हैं। इस प्रकार के आयोजन से देश की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने में मदद मिलती है।
NationPress
13/12/2025

Frequently Asked Questions

बनारसी साड़ी को जीआई टैग क्यों मिला है?
बनारसी साड़ी को जीआई टैग इसकी प्रामाणिकता और विशिष्टता को दर्शाने के लिए मिला है।
अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह कब मनाया जाता है?
यह सप्ताह ८ से १४ दिसंबर तक मनाया जाता है।
क्या बनारसी साड़ी की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है?
हाँ, बनारसी साड़ी की मांग देश-विदेश में बहुत अधिक है।
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