बिहार में मुसलमानों को सीएम और डिप्टी सीएम जैसे पदों से वंचित क्यों रखा जाता है?
सारांश
Key Takeaways
- मुस्लिम समुदाय को राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है।
- ओवैसी ने राजनीतिक भेदभाव का मुद्दा उठाया।
- एनआरसी पर सवाल उठाते हुए उन्होंने सरकार की नीतियों की आलोचना की।
- राजद पर भी सुविधा की राजनीति करने का आरोप लगाया गया।
- बिहार में सामाजिक न्याय की आवश्यकता है।
पटना, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार को तेज करते हुए ढाका और मुंगेर में रैलियों को संबोधित किया।
पूर्वी चंपारण जिले के ढाका में उन्होंने पार्टी के उम्मीदवार राणा रणजीत सिंह के लिए प्रचार किया, जबकि मुंगेर में मोनाजिर हसन के लिए समर्थन मांगा।
अपने भाषणों में ओवैसी ने एनडीए और महागठबंधन दोनों पर कड़ी आलोचना की और उन पर मुस्लिम समुदाय की अनदेखी का आरोप लगाया।
तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि बिहार में केवल 3 प्रतिशत आबादी वाले मल्लाह समुदाय के बेटे को उपमुख्यमंत्री और 14 प्रतिशत आबादी वाले समुदाय के बेटे को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, जबकि 17 प्रतिशत आबादी वाले मुसलमानों को दोनों पदों से वंचित रखा जाता है। यह सामाजिक न्याय नहीं, बल्कि राजनीतिक भेदभाव है।
ओवैसी ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दे पर भी केंद्र सरकार पर हमला बोला।
उन्होंने कहा कि एनआरसी के बाद केवल दो घुसपैठियों की पहचान हुई है। सरकार कहती है कि घुसपैठिए बिहार में घुस आए हैं, तो वे कहाँ हैं?
बाद में मुंगेर के चरवाहा विद्यालय मैदान में आयोजित एक विशाल रैली में ओवैसी ने सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन की कड़ी आलोचना की।
उन्होंने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर निशाना साधा और उन पर सुविधा की राजनीति करने का आरोप लगाया।
ओवैसी ने राजद को चुनौती देते हुए सवाल किया कि आप कब तक भाजपा के नाम पर मुसलमानों को डराते रहेंगे?