क्या नसीरुद्दीन शाह एक मंझा हुआ कलाकार और बेबाक अंदाज के धनी हैं?

सारांश
Key Takeaways
- नसीरुद्दीन शाह ने हिंदी सिनेमा में अद्वितीय योगदान दिया है।
- वे बेबाक विचारों के लिए जाने जाते हैं।
- उनका अभिनय हर जॉनर में प्रभावशाली है।
- उन्होंने समानांतर सिनेमा में महत्वपूर्ण पहचान बनाई है।
- उनकी निजी जिंदगी सरल और सादगी भरी है।
मुंबई, 19 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी सिनेमा में एक ऐसा नाम है जिसने अपनी प्रवीन अदाकारी से हर किरदार को पर्दे पर एक अद्भुत तरीके से प्रस्तुत किया। इसके साथ ही, उनका बेबाक अंदाज भी हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है। यह नाम है नसीरुद्दीन शाह। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में जन्मे नसीर 20 जुलाई को अपने 74वें जन्मदिन का जश्न मनाने जा रहे हैं।
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय की बारीकियों को सीखा, नसीर ने सिनेमा के माध्यम से दर्शकों को हमेशा कुछ नया और उत्कृष्ट प्रदान किया। उन्होंने अपने शानदार अभिनय के अलावा अपनी बेबाकी के कारण भी सुर्खियां बटोरी हैं।
उन्होंने 1973 में श्याम बेनेगल की फिल्म 'निशांत' से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की, जिसमें उनके साथ शबाना आजमी लीड रोल में थीं। इसके बाद 'जाने भी दो यारों', 'मासूम', 'आक्रोश', 'इजाजत', 'अर्द्ध सत्य', 'सरफरोश', 'इश्किया' और 'ए वेडनेसडे' जैसी फिल्मों में उनके प्रदर्शन ने दर्शकों की दिलों में खास जगह बनाई।
चाहे 'मासूम' में संवेदनशील पिता का किरदार हो, 'सरफरोश' में आतंकवादी शायर का, 'जाने भी दो यारों' में फोटोग्राफर का या 'ए वेडनेसडे' में आम आदमी का, नसीर ने हर भूमिका में जान डाल दी। एक्शन, रोमांस, ड्रामा हो या कॉमेडी, उन्होंने हर जॉनर में अपनी छाप छोड़ी।
1982 में अभिनेत्री रत्ना पाठक से विवाह करने वाले नसीर तीन बच्चों के पिता हैं, जिनके नाम हैं हीबा, इमाद, और विवान। उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी उतनी ही सादगी भरी रही, जितना उनका अभिनय प्रभावशाली रहा है।
'पार', 'मंडी', 'जुनून' और 'परजानिया' जैसी फिल्मों ने उन्हें समानांतर सिनेमा का बेहतरीन अभिनेता बना दिया, जबकि 'मोहरा' और 'इकबाल' ने उन्हें मुख्यधारा के दर्शकों का प्रिय बना दिया।
अभिनय जगत से इतर, नसीर की बेबाकी भी उनकी पहचान बन चुकी है। समाज, राजनीति और सिनेमा पर उनके कमेंट्स अक्सर सुर्खियों में रहते हैं और कई बार विवादों में भी बदल जाते हैं।
2010 में एक इंटरव्यू में उन्होंने अमिताभ बच्चन की फिल्मोग्राफी पर सवाल उठाते हुए कहा कि अमिताभ ने कोई महान फिल्म नहीं की। क्लासिक 'शोले' को भी उन्होंने केवल मनोरंजक कहा, महान नहीं। इसी तरह, 2016 में उन्होंने राजेश खन्ना को 'औसत अभिनेता' करार दिया और कहा कि 70 का दशक हिंदी सिनेमा का औसत दौर था। हालांकि, उन्होंने राजेश खन्ना की बेटी ट्विंकल खन्ना की आलोचना के बाद इस टिप्पणी के लिए माफी मांगी।
नसीर ने सामाजिक मुद्दों पर भी खुलकर बात की। लव जिहाद पर उन्होंने समाज को बांटने का आरोप लगाया, तो सीएए-एनआरसी विवाद के दौरान अनुपम खेर को 'जोकर' तक कह दिया।
देश के चर्चित क्रिकेटर विराट कोहली पर भी उन्होंने टिप्पणी करते हुए उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज, लेकिन 'खराब व्यवहार' वाला खिलाड़ी बताया।
इन सभी विवादों के बावजूद, एक चीज जो सिनेमा प्रेमियों को नसीर से बांधे रखती है - वह है उनका अभिनय। ऐसा अभिनय जिसने कई फिल्मों में नए आयाम को छुआ है, दर्शकों की संवेदनाओं तक पहुंचने वाला अभिनय, या एक ऐसा विलेन जिसका किरदार लोगों में सिहरन पैदा करता है। उनका संजीदा अभिनय आज भी फैंस को आकर्षित करता है।