क्या गजानन माधव मुक्तिबोध प्रगतिवाद के 'चट्टान' थे, जिनकी लंबी कविताएं हिंदी साहित्य का इतिहास बनीं?

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क्या गजानन माधव मुक्तिबोध प्रगतिवाद के 'चट्टान' थे, जिनकी लंबी कविताएं हिंदी साहित्य का इतिहास बनीं?

सारांश

गजानन माधव मुक्तिबोध, आधुनिक हिंदी कविता के एक अद्वितीय प्रतीक, ने अपनी लंबी कविताओं और विचारधारा के माध्यम से समाज को जागरूक करने का कार्य किया। उनका जीवन और रचनाएं आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। क्या आप जानते हैं कि उनकी कविताएं किस प्रकार इतिहास बन गईं?

Key Takeaways

  • गजानन माधव मुक्तिबोध प्रगतिवाद के प्रमुख कवि थे।
  • उनकी लंबी कविताएं हिंदी साहित्य में अद्वितीय मानी जाती हैं।
  • वे अपने विचारों के माध्यम से समाज को जागरूक करते थे।
  • उनकी रचनाएं आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
  • मुक्तिबोध का योगदान अनूठा और अविस्मरणीय है।

नई दिल्ली, 12 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। यह कथा गजानन माधव मुक्तिबोध की है, जिन्हें लेखनी की तीव्रता और प्रखर विचारधारा का जीवंत प्रतीक माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता और समीक्षा के सबसे चर्चित नामों में से एक थे। प्रगतिवाद के मौलिक और प्रखर चिंतक आलोचकों में मुक्तिबोध का स्थान शीर्ष पर है। उनकी कालजयी रचनाएं समाज को नई दिशा देने के लिए हमेशा प्रेरित करती रहीं। आज भी उनकी रचनाएं मार्गदर्शन का स्त्रोत बनी हुई हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर 1917 को मध्य प्रदेश के श्योपुर में हुआ। उनके पिता, माधव राव, एक निर्भीक और सम्मानित पुलिस अधिकारी थे। वहीं, उनकी मां, पार्वती मुक्तिबोध, एक धार्मिक और स्वाभिमानी महिला थीं, जिन्होंने हिंदी संस्कृति में अपने बच्चों को पाला।

मुक्तिबोध ने लेखन के साथ-साथ जीवन में भी प्रगतिशीलता का समर्थन किया। इसी कारण उन्होंने माता-पिता की इच्छाओं के खिलाफ प्रेम विवाह किया और 1939 में शांता से शादी की।

उनकी शिक्षा का कोई स्थायी केंद्र नहीं था, क्योंकि उनके पिता के तबादले के चलते उनकी पढ़ाई में बाधा आती रही। उन्होंने अंततः नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया। इसी दौरान उनकी कविता लेखन की रुचि भी बढ़ने लगी।

लेखन के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई के माध्यम से आय का एक स्रोत भी खोजा। मुक्तिबोध ने 20 साल की उम्र में बड़नगर मिडिल स्कूल से शिक्षण कार्य प्रारंभ किया और बाद में विभिन्न शहरों में पढ़ाने लगे। अंततः उन्होंने दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया और हिंदी साहित्य को अपनी महान रचनाएं दीं।

अध्ययन, लेखन, पत्रकारिता, आकाशवाणी और राजनीति में व्यस्त रहते हुए, मुक्तिबोध ने आधुनिक हिंदी कविता के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी युग की शुरुआत की।

वे एक कहानीकार और समीक्षक भी थे। उनकी कविताओं में बावड़ी, पुराने कुएं, वीरान खंडहर, पठार, बरगद जैसे शब्दों का बार-बार प्रयोग होता है। वे अपनी लंबी कविताओं के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी रचनाएं प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बनीं।

मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे, और उनके समकालीन कवि श्रीकांत वर्मा ने 'चांद का मुंह टेढ़ा है' काव्य संग्रह में लिखा, "गजानन माधव मुक्तिबोध की कविताएं अद्वितीय हैं, जो उनके इतिहास को दर्शाती हैं।"

शमशेर बहादुर सिंह ने कहा, "गजानन माधव मुक्तिबोध की तुलना एक बरगद से की गई है, लेकिन यह बरगद नहीं, चट्टान है।"

हालांकि, लगभग 47 वर्ष की आयु में मुक्तिबोध गंभीर बीमारी से जूझते रहे और 11 सितंबर 1964 को उनका निधन हो गया।

Point of View

बल्कि समाज में जागरूकता लाने का कार्य भी करती हैं। उनके विचार और कविताएं आज भी प्रासंगिक हैं, और हमें उनकी शिक्षा से प्रेरित होना चाहिए।
NationPress
12/11/2025

Frequently Asked Questions

गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म कब हुआ था?
गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर 1917 को मध्य प्रदेश के श्योपुर में हुआ था।
मुक्तिबोध ने शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
उन्होंने अपनी शिक्षा नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए करके पूरी की।
गजानन माधव मुक्तिबोध को किस प्रकार की कविताएं लिखने के लिए जाना जाता है?
उन्हें उनकी लंबी कविताओं के लिए जाना जाता है, जो प्रगतिवाद और नई कविता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बनती हैं।
मुक्तिबोध का प्रमुख योगदान क्या है?
उनका प्रमुख योगदान हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद को बढ़ावा देना और समाज को जागरूक करना है।
गजानन माधव मुक्तिबोध का निधन कब हुआ?
उनका निधन 11 सितंबर 1964 को हुआ।