क्या गोवा क्लब अग्निकांड और इंडिगो विमानन अव्यवस्था सरकार की लापरवाही का नतीजा है? सांसद फौजिया खान
सारांश
Key Takeaways
- गोवा क्लब में आग लगने से कई लोगों की जान गई है।
- सरकार को पीड़ितों की मदद करनी चाहिए।
- इंडिगो फ्लाइट्स में विलंब और कैंसलेशन का मुद्दा गंभीर है।
- एविएशन सेक्टर में मोनोपॉली की स्थिति बनी हुई है।
- सरकार को बड़ी नीतियों में सलाह-मशविरा करना चाहिए।
नई दिल्ली, 7 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। गोवा क्लब में आग लगने की घटना और इंडिगो की उड़ानों में विलंब और कैंसलेशन के मामले पर एनसीपी (एसपी) की राज्यसभा सांसद फौजिया खान ने केंद्र सरकार से गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इन घटनाओं को सरकार की लापरवाही का नतीजा बताते हुए कहा कि सरकार को जिम्मेदारी तय कर तत्काल कदम उठाने होंगे।
गोवा क्लब में शनिवार रात लगी आग में कई लोगों की मौत और कई के घायल होने की घटना को सांसद फौजिया खान ने बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि इस दुखद घटना में बहुत से लोगों की जान गई है। कितने लोग घायल हैं, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। सबसे पहले सरकार को पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद करनी चाहिए। तुरंत मुआवजा दिया जाना चाहिए।
उन्होंने आग से जुड़े सुरक्षा प्रबंधों पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि इस हादसे में सिर्फ जांच कराना पर्याप्त नहीं होगा। उन्होंने सवाल किया कि बचाव के उपाय क्यों नहीं किए गए? सरकार ने सुरक्षा इंतजाम क्यों नहीं किए? सही मॉनिटरिंग और इंस्पेक्शन की जिम्मेदारी किसकी है? इतने बड़े स्तर पर जानमाल की हानि की जिम्मेदारी कौन लेगा? सिर्फ जांच से समस्या हल नहीं होगी।
इंडिगो फ्लाइट्स में विलंब और कैंसलेशन पर भी फौजिया खान ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि एविएशन सेक्टर में मोनोपॉली का खामियाजा जनता भुगत रही है।
उन्होंने आगे कहा कि हवाई यात्रा से जुड़ी अव्यवस्था बेहद गंभीर मामला है और इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला, सरकारी नीतियों के चलते एविएशन सेक्टर में मोनोपॉली की स्थिति बन गई है, जिससे यात्रियों की निर्भरता महज एक-दो कंपनियों पर आ गई है। उन्होंने बताया कि पहले देश में कई एयरलाइंस थीं, आज दर्जनों बंद हो चुकी हैं, इसलिए जब एक ही एयरलाइन में कोई समस्या आती है तो पूरा सिस्टम चरमरा जाता है। दूसरा प्रमुख कारण नीतिगत फैसलों में सरकार का किसी से सलाह न लेना है। फौजिया खान ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार की आदत ही यही बन गई है कि बड़े फैसले लेते समय वह किसी से राय-मशविरा नहीं करती और शायद ही दूसरों की सलाह पर ध्यान देती है।