क्या ग्रेनो में सोलर तकनीक से एसटीपी के स्लज से खाद बनेगी? आईआईटी दिल्ली बना रहा डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट

सारांश
Key Takeaways
- एसटीपी से स्लज को खाद में बदलने की तकनीक का विकास।
- आईआईटी दिल्ली द्वारा डीपीआर का निर्माण।
- परियोजना का उद्देश्य पर्यावरण और कृषि में सुधार।
- गोवा में पहले से इस्तेमाल की जा रही तकनीक का उपयोग।
- प्रोजेक्ट की संभावित सफलता से अन्य एसटीपी पर भी लागू होगा।
ग्रेटर नोएडा, 21 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण केवल सीवरेज प्रबंधन नहीं, बल्कि एसटीपी से उत्पन्न होने वाले स्लज को खाद में परिवर्तित करने की तकनीक पर कार्यरत है। प्राधिकरण ने इस संदर्भ में आईआईटी दिल्ली से विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करवाने की प्रक्रिया शुरू की है। इस महीने के अंत में डीपीआर तैयार हो जाएगी।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ एनजी रवि कुमार का लक्ष्य है कि एसटीपी से निकले हुए उपचारित जल के पुनः उपयोग के साथ-साथ स्लज को भी प्रोसेस करके खाद के रूप में उपयोग किया जाए। सीईओ के निर्देश पर सीवर विभाग की टीम ने यह जानकारी प्राप्त की है कि गोवा में एसटीपी से निकलने वाले स्लज को खाद बनाने की तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। इसी तकनीक को यहाँ लागू करने की तैयारी की जा रही है।
वरिष्ठ प्रबंधक विनोद कुमार शर्मा ने बताया कि यह तकनीक सोलर ड्राई स्लज मैनेजमेंट (एसडीएसएम) कहलाती है। इसके माध्यम से केवल पांच दिनों में स्लज सूखकर भुरभुरी राख में परिवर्तित हो जाएगा। इसे खाद में बदलकर उद्यानीकरण में उपयोग किया जाएगा। सबसे पहले कासना स्थित 137 एमएलडी एसटीपी पर इस तकनीक को लागू करने की योजना है। यदि यह तकनीक सफल होती है, तो अन्य एसटीपी पर भी इसे लागू किया जाएगा।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, चार एसटीपी प्लांट स्थापित किए जाएंगे, जिनमें बादलपुर में 2 एमएलडी, कासना में 137 एमएलडी, ईकोटेक-2 में 15 एमएलडी और ईकोटेक-3 में 20 एमएलडी की क्षमता वाला प्लांट होगा। ग्रेटर नोएडा की एसीईओ प्रेरणा सिंह के अनुसार, 'सोलर ड्राई स्लज मैनेजमेंट तकनीक के माध्यम से स्लज के प्रबंधन पर विचार किया जा रहा है। इससे स्लज को कंपोस्ट में परिवर्तित किया जाएगा। आईआईटी दिल्ली से डीपीआर आने पर इस परियोजना की विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सकेगी।'