क्या गुरुआ विधानसभा सीट पर भाजपा और राजद में होगी कांटे की टक्कर?
सारांश
Key Takeaways
- गुरुआ विधानसभा सीट पर भाजपा और राजद के बीच कांटे की टक्कर है।
- यह सीट प्राचीन बौद्ध सभ्यता के अवशेषों से भरी हुई है।
- यहाँ अनुसूचित जाति और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है।
- गुरुआ का चुनावी गणित हर बार एक विशिष्ट पैटर्न पर चलता है।
- भाजपा और राजद दोनों ने इस सीट पर 6-6 बार जीत हासिल की है।
पटना, 1 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के गयाजी जिले में टिकारी अनुमंडल के निकट स्थित गुरुआ अपने नाम के अनुरूप ही रहस्य और महत्व का आवरण ओढ़े हुए है। यहाँ एक ओर प्राचीन बौद्ध स्तूपों के अवशेष हैं, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच हर चुनाव में होने वाली कांटे की टक्कर जारी है।
यह क्षेत्र बिहार की राजनीति का एक अत्यंत दिलचस्प चुनावी अखाड़ा है। 1977 में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बनने के बाद से यह सीट औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक बन गई है।
चुनावी इतिहास दर्शाता है कि यह सीट भाजपा और राजद के बीच मुकाबले का केंद्र रही है। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र नाथ वर्मा ने पहली जीत दर्ज की थी। इसके बाद राजद ने इस सीट पर अपना प्रभुत्व बनाया। राजद के शकील अहमद खान ने 2000 से 2005 के बीच इस सीट पर लगातार तीन बार जीत हासिल की थी। हालांकि, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) आज तक इस सीट पर कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई है।
पिछले कुछ चुनावों में यह देखा गया है कि गुरुआ का चुनावी गणित एक विशिष्ट पैटर्न का अनुसरण करता है। जीत का अंतर लगभग 6,500 वोटों के आस-पास बना रहता है।
2020 के विधानसभा चुनाव में, राजद के विनय यादव ने भाजपा के राजीव नंदन डांगी को लगभग 6 हजार के अंतर से हराया था। खास बात यह रही कि बसपा के राघवेंद्र नारायण यादव ने 15 हजार वोट लाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था।
हाल ही में संपन्न 2024 के लोकसभा चुनावों में भी राजद के उम्मीदवार ने गुरुआ विधानसभा क्षेत्र में 6,970 वोटों की बढ़त हासिल की।
अब तक, यह सीट आरजेडी और भाजपा, दोनों ने छह-छह बार जीती है, जबकि कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो-दो बार जीत प्राप्त की है।
गुरुआ विधानसभा सीट, भले ही सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है, पर यहाँ का सामाजिक ताना-बाना बेहद निर्णायक है। यहाँ अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 32.4 प्रतिशत है। मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी भी लगभग 9.4 प्रतिशत है। इसके अलावा, यादव, राजपूत, कोइरी और पासवान मतदाताओं की संख्या भी यहां के चुनावी समीकरण पर प्रभाव डालती है।
गुरुआ के अतीत की कहानी इसकी मिट्टी में दबी हुई है। इतिहासकारों का मानना है कि यह क्षेत्र प्राचीन मगध साम्राज्य का अभिन्न अंग रहा है, जिससे इसका ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ जाता है। गयाजी से लगभग 31 किलोमीटर और पवित्र बोधगया से 46 किलोमीटर दूर स्थित गुरुआ के नाम की उत्पत्ति भी एक पहेली है।
हाल के पुरातात्विक प्रयासों ने इस रहस्य से पर्दा उठाना शुरू किया है। गुरुआ प्रखंड का भुरहा गांव इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेखित इस गांव को प्राचीन बौद्ध सभ्यता का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। किंवदंती है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध स्वयं बोधगया से सारनाथ जाते समय इस क्षेत्र से गुजरे थे। यहाँ पाई गई बुद्ध की प्रतिमाएं इस बात की गवाही देती हैं कि यह क्षेत्र कभी बौद्ध कला निर्माण का एक बड़ा केंद्र रहा होगा।
वर्ष 1847 में मेजर किट्टो ने इस स्थल का सर्वेक्षण किया था, जिसमें बौद्ध स्तूपों, चैत्यों और विहारों के अवशेष सामने आए। बाद की खुदाई में 6वीं से 10वीं शताब्दी तक के स्तंभ, अभिलेख और पूजात्मक स्तूप भी मिले हैं।
इतिहास के गौरवशाली पन्नों से निकलकर हम आधुनिक गुरुआ प्रखंड को देखते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, गुरुआ की कुल जनसंख्या 1,84,286 थी। यहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या घनत्व 928 व्यक्ति था।
आंकड़े बताते हैं कि गुरुआ की आत्मा आज भी गांवों में बसती है। यह क्षेत्र लगभग पूरी तरह से ग्रामीण है, जहाँ 2020 विधानसभा चुनाव के कुल मतदाताओं (2,86,233) में से मात्र 1.22 प्रतिशत मतदाता ही शहरी थे।
यह वह सीट है जो अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ, हर चुनाव में एक बेहद करीबी और रोमांचक मुकाबले का वादा करती है।