क्या जीण माता और हर्ष भैरव का मंदिर भाई-बहन के प्रेम को दर्शाता है?

सारांश
Key Takeaways
- भाई दूज भाई-बहन के रिश्ते का पर्व है।
- जीण माता और हर्ष भैरव का मंदिर पौराणिक कथा को दर्शाता है।
- मंदिर में अखंड ज्योति जलती है।
- श्रद्धालु दूर-दूर से मंदिर में आते हैं।
- काजल लेकर आने से नेत्र दोष दूर होते हैं।
नई दिल्ली, 21 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भाई-बहन के पावन रिश्ते का पर्व भाई दूज पूरे देश में 23 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस विशेष अवसर पर बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं।
भाई दूज पर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग विभिन्न मंदिरों में जाते हैं, लेकिन राजस्थान में एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो भाई-बहन के अनोखे प्रेम को दर्शाता है। इस दिन दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
राजस्थान के सीकर जिले के पास स्थित जीण माता और हर्ष भैरव का मंदिर अपनी पौराणिक कथा के लिए मशहूर है, जो भाई-बहन के पवित्र प्रेम को उजागर करती है। कहा जाता है कि चूरू जिले के घांघू गांव में जीण और हर्ष का जन्म हुआ था। दोनों भाई-बहन एक-दूसरे के प्रति गहरी लगाव रखते थे, लेकिन भाई हर्ष की शादी के बाद सब कुछ बदल गया।
हर्ष की पत्नी, जीण की भाभी, दोनों को अलग करने के लिए षड्यंत्र करने लगी। इस स्थिति से परेशान होकर जीण एक पहाड़ पर जाकर विलाप करने लगीं। उनके भाई हर्ष उन्हें मनाने आए, लेकिन वे नहीं मानीं। जीण ने उसी काजल पहाड़ी के शिखर पर तपस्या की और आदिशक्ति का रूप धारण किया।
कहा जाता है कि भाई हर्ष ने भी हार नहीं मानी और काजल पहाड़ी के सामने बनी पहाड़ी पर शिव की तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या कई वर्षों तक चली, लेकिन अपनी बहन से दूर होने के लिए जीण ने जयंती देवी की ज्योति में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
यह माना जाता है कि आज भी वहां अखंड ज्योति जलती है और जो भी काजल बनाकर ले जाता है, उसके नेत्र दोष दूर होते हैं। भाई दूज पर लोग जीण माता और हर्ष भैरव मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं और नेत्रों के लिए काजल लेकर आते हैं। इस दिन मंदिर में विशेष भीड़ होती है।
यह भी मान्यता है कि जो भी माता जीण के दर्शन के लिए आता है, उसे हर्ष मंदिर भी जाना होता है। दोनों मंदिरों के दर्शन के बाद ही उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। यह भी कहा जाता है कि खाटूश्याम जाने वाले भक्त भी जीण माता के मंदिर अवश्य जाते हैं, क्योंकि खाटूश्याम बाबा भी उनके भाई हैं।