क्या आपको कलयुग के राजा के कोप से बचना है? तो भारत के इन मंदिरों का दर्शन करें!

सारांश
Key Takeaways
- राहु को कलयुग का राजा माना जाता है।
- राहु की पूजा से कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- उत्तराखंड का राहु मंदिर देश का एकमात्र मंदिर है।
- शिव की पूजा से सभी ग्रहों की विपरीत दशाओं से मुक्ति मिलती है।
- दक्षिण भारत में भी राहु की पूजा के प्रसिद्ध मंदिर हैं।
नई दिल्ली, 17 जून (राष्ट्र प्रेस)। कुंडली के नवग्रहों में से राहु को कलयुग का राजा माना गया है। राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है। यदि राहु और केतु किसी की कुंडली में उच्च स्थिति में हों, तो वे अप्रत्याशित सफलता और लाभ देते हैं और जातक को राजयोग का सुख प्राप्त होता है। लेकिन यदि राहु खराब स्थिति में हो, तो वह इच्छाओं, भ्रम, डर और छल से जातक का जीवन बर्बाद कर सकता है।
राहु को कलयुग का राजा माना गया है, क्योंकि इस युग की विशेषताएं इच्छाओं, भ्रम, भौतिकवाद और छल की अधिकता हैं। इस युग में अराजकता, महत्वाकांक्षा और सांसारिक लाभ की खोज, जो राहु के लक्षण हैं, लोगों की प्राथमिकता बन गई है।
राहु की दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा के कारण व्यक्ति के जीवन में कष्ट, भ्रम, स्वास्थ्य हानि, धन हानि, पारिवारिक सुख में कमी और करियर में व्यवधान जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इससे उबरने के लिए राहु की शांति का उपाय आवश्यक है। राहु की अधिष्ठात्री देवी, मां सरस्वती, की पूजा करना इन कष्टों से मुक्ति दिला सकता है। इसके अलावा, भगवान शिव, भगवान गणेश, हनुमान जी और भगवान विष्णु की पूजा भी लाभकारी मानी जाती है।
भारत में राहु की पूजा के लिए कुछ विशेष मंदिर हैं, जिनमें एक प्रसिद्ध मंदिर राहु मंदिर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब राक्षस स्वरभानु का सिर और धड़ सुदर्शन चक्र से काटा, तब उसका सिर जिस स्थान पर गिरा, वहीं यह मंदिर स्थित है।
यह राहु मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले के थलीसैंड ब्लॉक के पैठाणी गांव में है। इसे देश का एकमात्र राहु मंदिर माना जाता है, जहां राहु की पूजा भगवान शिव के साथ होती है। इस मंदिर को इन्द्रेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यहां मान्यता है कि अगर राहु का पूजन बाधित होता है, तो भगवान शिव नाराज हो जाते हैं।
यह मंदिर दो नदियों के संगम पर स्थित है। इसे पांडवों द्वारा निर्मित माना जाता है। यहां राहु देव और शिव की आराधना की गई थी। आदि शंकराचार्य ने भी इस स्थान पर राहु के प्रकोप का अनुभव किया था और मंदिर की स्थापना की। मंदिर की दीवारों पर राहु के कटे सिर और भगवान विष्णु के सुदर्शन की कारीगरी है।
दक्षिण भारत में भी राहु की पूजा के लिए महत्वपूर्ण मंदिर हैं, जैसे थिरुनागेश्वरम मंदिर (तमिलनाडु) और श्री कालहस्ती मंदिर (आंध्र प्रदेश) जहां राहु और केतु का पूजा एक साथ होती है।