क्या कांडा षष्ठी उत्सव के समापन पर हजारों श्रद्धालु भगवान मुरुगन और देवी दीवानाई के दर्शन करने पहुंचे?
सारांश
Key Takeaways
- कांडा षष्ठी उत्सव का समापन शानदार तरीके से हुआ।
- भक्तों ने भगवान मुरुगन और देवी दीवानाई के दर्शन किए।
- रथ यात्रा के दौरान भक्तों का उत्साह अद्भुत था।
- पुलिस बल की तैनाती और पार्किंग की विशेष व्यवस्था की गई।
- उत्सव में काला धागा बांधने की रस्म महत्वपूर्ण है।
मदुरै, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। तमिलनाडु के तिरुपरनकुंद्रम मंदिर में कांडा षष्ठी उत्सव का शानदार समापन हुआ, जहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने भगवान मुरुगन और देवी दीवानाई के दर्शन किए।
समापन के दिन भगवान मुरुगन और देवी दीवानाई को एक रथ पर विराजमान देखा गया, जहां भक्तों ने फूल-माला अर्पित कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति की प्रार्थना की।
कांडा षष्ठी उत्सव के समापन पर भगवान मुरुगन और देवी दीवानाई का स्वागत दक्षिण भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनि के साथ किया गया। दोनों देवताओं को सुनहरे आभूषणों से सजाया गया और छोटे रथ पर बैठकर भक्तों को दर्शन दिए। इस अवसर पर भक्तों में भक्ति का अद्भुत उत्साह देखा गया। श्रद्धालुओं ने "वेट्रीवेल मुरुगन को अरोरा" (विजयी मुरुगन की जय) और "वीरा वेल मुरुगनुक्कु अरोहरा" (बहादुर मुरुगन की जय) जैसे मंत्रों का जाप किया।
भक्तों ने भगवान मुरुगन और देवी दीवानाई के रथ की रस्सियों को खींचा और लगातार जयकारे लगाते रहे।
मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के लिए पुलिस बल की तैनाती की गई थी। पार्किंग की विशेष व्यवस्था की गई थी और जाम से बचने के लिए कई मार्गों को डायवर्ट किया गया। रथ यात्रा सन्निधि स्ट्रीट, फिर पूर्वी राठी स्ट्रीट और बड़ी राठी स्ट्रीट से होते हुए पहाड़ी की परिक्रमा कर मंदिर पहुंची, जिसके बाद सभी श्रद्धालुओं ने धागा उतारकर देवी-देवताओं को समर्पित किया।
ज्ञात रहे कि कांदा षष्ठी उत्सव का 'कापू कट्टुधल' समारोह होता है, जिसमें श्रद्धालु अपने हाथों में काला धागा बांधते हैं, जिसे 'कप्पू कट्टुथल' कहा जाता है। इसके अगले दिन वेल (भाला) अर्पित करने की रस्म होती है, जिसमें भगवान मुरुगन को भाला अर्पित किया जाता है। अगले दिन सूरसंहार लीला होती है, जिसमें भगवान मुरुगन उसी भाले से राक्षस सूरपद्मन का विनाश करते हैं।
यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान मुरुगन की माता, माता गोवर्धनम्बिगई ने उन्हें भाला प्रदान किया था। इस रस्म के बाद मंदिर के अंदर भगवान मुरुगन और देवी दीवानाई के बीच माला पहनाने का समारोह होता है, जिसे देखने के लिए इस बार मंदिर में हजारों की भीड़ देखी गई। माला कार्यक्रम के समापन के बाद दोनों देवता छोटे रथ पर बैठकर भक्तों को दर्शन देते हैं। सारी रस्में पूरी होने के बाद भक्त जिस धागे को पहले दिन बांधते हैं, उसे अपनी कलाई से उतार देते हैं। इस पूरे उत्सव के दौरान सभी भक्त उपवास रखते हैं और भगवान मुरुगन की आराधना करते हैं।