क्या 800 साल पुराना शिवालय रामायण को उल्टी दिशा में लिखता है?
सारांश
Key Takeaways
- अमृतेश्वर मंदिर की वास्तुकला और कला अद्वितीय है।
- दीवारों पर रामायण और महाभारत की कथाएं दर्शाई गई हैं।
- यह मंदिर होयसल वंश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
- भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर आध्यात्मिक शांति का केंद्र है।
- मंदिर का शांत वातावरण पर्यटकों को आकर्षित करता है।
चिकमंगलूर, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जो केवल भक्ति का केंद्र नहीं हैं, बल्कि कला, इतिहास और शांति का भी प्रतीक हैं। कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले से केवल 67 किमी दूर, भद्रा नदी के किनारे स्थित छोटे-से गांव अमृतपुरा में चालुक्य साम्राज्य की अद्वितीय वास्तुकला का उदाहरण अमृतेश्वर मंदिर है।
यह मंदिर होयसल वंश द्वारा निर्मित किया गया था और अब यह कर्नाटक की आर्किटेक्चरल विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। 1196 ईस्वी में बने इस शिव मंदिर में न केवल भक्तों को आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि पर्यटकों को भी 800 साल पुरानी नक्काशी और पत्थरों पर लिखे महाकाव्यों की अद्भुत दुनिया देखने को मिलती है।
अमृतेश्वर मंदिर का निर्माण होयसल सम्राट वीरा बल्लाल द्वितीय द्वारा किया गया था, जो भगवान शिव को समर्पित है और उस समय की कला, शिल्प और आध्यात्मिकता का प्रमाण है। होयसल शैली में बना यह मंदिर बाहरी रूप से जितना आकर्षक है, अंदर से उससे भी अधिक सुंदर है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर गोलाकार डिज़ाइन और नक्काशी है। सामने एक बंद मंडप और एक विशाल खुला मंडप है, जो चमकदार खराद वाले स्तंभों पर टिका हुआ है। इन चमकीले स्तंभों को देखकर कोई विश्वास नहीं कर सकता कि ये 800 साल से अधिक पुराने हैं।
सबसे अद्भुत बात यह है कि मंदिर की बाहरी दीवारों पर 140 महाकाव्य कथाएं उकेरी गई हैं। दक्षिण की दीवार पर रामायण के 70 दृश्य एंटी क्लॉकवाइज (उल्टी दिशा में) बनाए गए हैं, जबकि उत्तर की दीवार पर 25 पैनल भगवान कृष्ण की बाल लीलाएं और शेष 45 पैनल महाभारत की घटनाओं को दर्शाते हैं। जैसे पूरा महाकाव्य पत्थरों पर लिख दिया गया हो।
जानकारी के अनुसार, होयसल कला के शिल्पकार मल्लितम्मा ने यहीं पर अपनी कला का आरंभ किया था और यही मंदिर होयसल स्वर्ण युग का पहला अध्याय माना जाता है। गर्भगृह में नेपाल की कांदकी नदी से लाया गया प्राचीन त्रिमूर्ति शिवलिंग विराजमान है, और बगल में मां शारदा सुशोभित हैं।
इसके साथ ही दीवारों पर शेर से लड़ता योद्धा, शिखर पर कीर्तिमुख, छोटे-छोटे टावर और गजसुर वध का दृश्य भी उत्कीर्ण है। छतों पर फूलों वाले डिज़ाइन और खंभों पर नक्काशी है।
शांत वातावरण, भद्रा नदी का कल-कल, और दूर तक फैली हरियाली पर्यटकों को आकर्षित करती है। मंदिर में बिल्व अर्चना और कुमकुम अर्चना विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।