क्या आप जानते हैं केरल के उस मंदिर के बारे में, जहां शिव के 8 रूप प्रकट होते हैं?
सारांश
Key Takeaways
- एट्टुमानूर मंदिर में शिव के आठ रूपों की पूजा होती है।
- साढ़े सात स्वर्ण हाथियों का भव्य जुलूस हर वर्ष निकलता है।
- मंदिर की द्रविड़ वास्तुकला अद्वितीय है।
- यह मंदिर कोट्टायम से केवल 12 किलोमीटर दूर है।
- भक्तों को पारंपरिक वस्त्र पहनने की आवश्यकता होती है।
तिरुवनंतपुरम, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केरल के हरे-भरे कोट्टायम जिले में स्थित एट्टुमानूर महादेव मंदिर केवल एक तीर्थस्थान नहीं है, बल्कि यह आस्था, प्राचीन कला, भक्ति और शाही चित्रण का अद्वितीय संगम है। कहा जाता है कि यहां भगवान महादेव ने आठ भिन्न दिव्य रूपों में प्रकट होकर भक्तों को दर्शन दिए थे।
सदियों पुराना यह शिवधाम न केवल आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराता है, बल्कि द्रविड़ वास्तुकला, भित्तिचित्रों और विश्व प्रसिद्ध ‘एझरा पोन्नाना’ यानी साढ़े सात स्वर्ण हाथियों के कारण भी मशहूर है।
केरल पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर मंदिर की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। इस मंदिर का नाम ही इसकी रहस्यमयी कहानी बयां करता है, ‘एट्टु’ यानी आठ और ‘मानम’ यानी दिव्य रूप।
मान्यता है कि स्वयं भगवान शिव ने यहां अपने आठ भिन्न रूपों में दर्शन दिए थे, इसी कारण इस पवित्र भूमि को एट्टुमानूर नाम दिया गया।
1542 ईस्वी में पुनर्निर्मित इस भव्य मंदिर का दृश्य देखने पर श्रद्धालु दंग रह जाते हैं। ऊंचा गोपुरम, किले जैसी मजबूत दीवारें, तांबे की चादरों से ढकी छतें और 14 अलंकृत शिखर, हर कोना अद्भुत इंजीनियरिंग का प्रमाण है।
मंदिर के परिसर में प्रवेश करते ही दीवारों पर बने द्रविड़ शैली के भित्तिचित्रों का जादू देखने लायक है। इनमें सबसे प्रसिद्ध भगवान शिव का प्रदोष नृत्य चित्र है, जिसे भारत के बेहतरीन भित्तिचित्रों में गिना जाता है। स्वर्ण ध्वजस्तंभ पर विराजमान नंदी की मूर्ति घंटियों से सजी हुई है। लेकिन इस मंदिर की असली पहचान है, एझरा पोन्नाना यानी साढ़े सात स्वर्ण हाथी! कटहल की लकड़ी से तराशी गई ये कलात्मक मूर्तियां (सात बड़ी और एक आधी आकार की) कुल 13 किलोग्राम शुद्ध सोने से ढकी हुई हैं।
जानकारी के अनुसार, त्रावणकोर के शासक अनिझम थिरुनल मार्तंडा ने इन मूर्तियों को भेंट करने का संकल्प लिया था, जिसे उनके उत्तराधिकारी महाराजा कार्तिका थिरुनल ने पूरा किया। हर साल, कुंभम महीने (फरवरी-मार्च) के दस दिवसीय उत्सव के आठवें दिन, आधी रात को स्वर्ण हाथी भक्तों को दर्शन देते हैं। हर वर्ष 13 किलोग्राम सोने से सजाए गए स्वर्ण हाथियों का भव्य जुलूस निकलता है।
प्राचीन कथाएं बताती हैं कि यहां पांडवों ने प्रार्थना की थी और महर्षि व्यास ने तपस्या की थी। मुख्य शिवलिंग के अलावा, यहां भगवती, दक्षिणामूर्ति, गणपति, यक्षी और भगवान कृष्ण का भी मंदिर है।
एट्टुमानूर मंदिर तक पहुंचना आसान है, यह कोट्टायम से केवल 12 किलोमीटर और एर्नाकुलम से 54 किलोमीटर दूर स्थित है। मंदिर आने वाले भक्तों को पारंपरिक वस्त्र पहनना अनिवार्य है।