क्या इस्लाम 'वंदे मातरम' पढ़ने या गाने की इजाजत नहीं देता?: एसटी हसन
सारांश
Key Takeaways
- एसटी हसन का बयान धार्मिक और राजनीतिक दोनों दृष्टिकोन से महत्वपूर्ण है।
- बिहार में महागठबंधन की संभावनाएं बढ़ रही हैं।
- वंदे मातरम का मुद्दा सामाजिक एकता को प्रभावित कर सकता है।
मुरादाबाद, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता एसटी हसन ने बिहार चुनाव और वंदे मातरम पर राष्ट्र प्रेस से चर्चा की। उन्होंने कहा कि बिहार में अधिक मतदान होना सत्ता विरोधी लहर का संकेत है।
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद, एसटी हसन ने कहा कि बिहार की जनता परिवर्तन की चाहत रखती है। इस बार महागठबंधन की सरकार बनने की संभावना है। उन्होंने कहा कि यदि बिहार चुनाव में वोटों की गिनती निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से होती है, तो कोई भी ताकत महागठबंधन की सरकार बनने से नहीं रोक सकती।
एसटी हसन का कहना है कि पिछले 50 वर्षों में इस बार जितनी मतदान हुई है, उतनी पहले कभी नहीं हुई। जब मतदान प्रतिशत अधिक होता है, इसका मतलब है कि लोग सत्ताधारी पार्टी से नाखुश हैं।
वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर पूछे गए सवाल पर, सपा नेता ने कहा कि आरएसएस और भाजपा ने इसे राष्ट्रवाद से जोड़कर एक माहौल बनाया है। उन्होंने वंदे मातरम को देशभक्ति से जोड़ने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि इस्लाम हमें वंदे मातरम पढ़ने या गाने की इजाजत नहीं देता।
उन्होंने बताया कि न केवल महाराष्ट्र में सपा नेता अबू आजमी ही, बल्कि देश के सभी मुसलमान इस विचार का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि इस्लाम केवल अल्लाह की पूजा की इजाजत देता है, जबकि वंदे मातरम में भूमि की पूजा की जा रही है। ऐसे में वंदे मातरम गाना इस्लाम के नजरिए से गलत है।
सपा नेता कहते हैं कि इस्लाम कहता है कि हमने इंसान को सर्वोच्च प्राणी बनाया है, जबकि बाकी चीजें इंसान की जिंदगी को सरल बनाने के लिए बनाई गई हैं, चाहे वो जमीन, आसमान, या जलवायु ही क्यों न हों। इंसान की जरूरतें पूरी करने के लिए इनका निर्माण किया गया है। इसलिए हम वंदे मातरम नहीं पढ़ सकते।