क्या मतदान का अधिकार लोकतंत्र का मूल स्तंभ है, या सरकार की दया?
सारांश
Key Takeaways
- मतदान का अधिकार लोकतंत्र का मौलिक सिद्धांत है।
- चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को खत्म करने का आरोप।
- सरकार के खिलाफ राजनीतिक दबाव का मामला।
- भाजपा सरकार के चुनावी रणनीतियाँ।
- मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में बदलाव।
नई दिल्ली, 10 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस के महासचिव और सांसद केसी वेणुगोपाल ने बुधवार को लोकसभा में एनडीए सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के खिलाफ केंद्र ने ईसीआई की स्वतंत्रता को व्यवस्थित तरीके से समाप्त करने का प्रयास किया है।
वेणुगोपाल ने कहा, "एक निष्पक्ष चुनावी संस्था का विचार अब खुलेआम कुचला गया है। चुनाव आयोग अब राजनीतिक दबाव में आ गया है और पक्षपाती हो गया है।"
उन्होंने कहा कि वोट देने का अधिकार किसी भी सरकार की दया नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र का एक मौलिक सिद्धांत है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हवाला देते हुए, वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि चुनावों के नजदीक आते ही भाजपा सरकार एसआईआर शुरू कर देती है। यह बिहार में हुआ, और अब यह कई राज्यों में हो रहा है।
उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ ही हफ्ते पहले कांग्रेस के सभी बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया था, जिसे उन्होंने इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने में देरी का परिणाम बताया। उन्होंने पूछा, "क्या किसी लोकतांत्रिक देश में यह संभव है कि मुख्य विपक्षी पार्टी के खातों को इतनी कमजोर आधार पर जानबूझकर चुनाव से ठीक पहले फ्रीज कर दिया जाए?"
वेणुगोपाल ने केंद्रीय एजेंसियों पर केवल विपक्ष के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "जैसे ही चुनाव की घोषणा होती है, इनकम टैक्स, सीबीआई और ईडी बहुत सक्रिय हो जाते हैं। विपक्षी नेताओं पर हर दिन छापे होते हैं। भाजपा नेताओं के खिलाफ कुछ नहीं होता।"
कांग्रेस नेता ने संविधान सभा की बहसों और सुप्रीम कोर्ट के 2023 के अनूप बरनवाल मामले के फैसले का हवाला दिया, जिसमें जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश वाली चयन समिति को अनिवार्य किया था।
वेणुगोपाल ने आरोप लगाया, "सुप्रीम कोर्ट निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों के लिए एक निष्पक्ष संस्था चाहता था। लेकिन इस सरकार ने एक ऐसा कानून लाया, जिसने मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया और उनकी जगह प्रधानमंत्री की पसंद के कैबिनेट मंत्री को रख दिया।"
उन्होंने चुनाव आयोग और उसके अधिकारियों को कानूनी छूट देने वाले नए क्लॉज पर सबसे तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि 1950 से 2023 तक, किसी भी चुनाव आयोग ने ऐसी छूट नहीं मांगी थी। बहादुर और निष्पक्ष आयोग ने इसके बिना काम किया। अब 2023 में यह अचानक मांग क्यों? सिर्फ एक जवाब है- दोषी जमीर। यह छूट नहीं है, यह मनमानी है। यह चुनाव आयोग के लिए जिंदगी भर की वॉशिंग मशीन है।