क्या उपराष्ट्रपति धनखड़ की अपील से मानसून सत्र में राजनीतिक संवाद बेहतर होगा?

सारांश
Key Takeaways
- परस्पर सम्मान का महत्व समझें।
- व्यक्तिगत हमलों से बचें।
- राजनीतिक संवाद उच्च स्तर पर होना चाहिए।
- रचनात्मक राजनीति को बढ़ावा दें।
- सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
नई दिल्ली, 20 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार से आरंभ हो रहे मानसून सत्र से पहले सभी राजनीतिक दलों के बीच एक सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने की अपील की। उन्होंने सभी पार्टी के सांसदों से परस्पर सम्मान रखने, टेलीविजन पर अभद्र भाषा का प्रयोग न करने और व्यक्तिगत हमलों से बचने का अनुरोध किया है।
उपराष्ट्रपति ने नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में राज्यसभा के आठवें बैच के प्रतिभागियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम (आरएसआईपी) के उद्घाटन समारोह के दौरान यह बातें कहीं।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, "मैं सभी राजनीतिक दलों के सदस्यों से निवेदन करता हूं कि कृपया परस्पर सम्मान बनाए रखें। कृपया टेलीविजन पर या किसी भी पार्टी के नेताओं के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग न करें। यह हमारी सभ्यता का मूल नहीं है। हमें अपनी भाषा का ध्यान रखना चाहिए। व्यक्तिगत आक्षेपों से बचें। अब समय आ गया है कि हम राजनेताओं को गालियां देना बंद करें। जब विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग एक-दूसरे को गालियां देते हैं, तो यह हमारी संस्कृति के लिए उचित नहीं है।"
उपराष्ट्रपति ने कहा, "हमें मर्यादा और परस्पर सम्मान की भावना को बनाए रखना चाहिए। यही हमारी संस्कृति की आवश्यकता है। अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया में एकता नहीं हो सकती। यकीन मानिए, अगर राजनीतिक संवाद उच्च स्तर पर हो, यदि नेता एक-दूसरे से अधिक मिलते-जुलते रहें, तो वे आपस में अधिक संवाद करेंगे। हमें लोकतांत्रिक संस्कृति का सम्मान करना चाहिए। एक समृद्ध लोकतंत्र निरंतर कटुता का माहौल सहन नहीं कर सकता। जब आप राजनीतिक कटुता को अलग दिशा में पाते हैं, तो आपका मन विचलित हो जाता होगा। मैं सभी से आग्रह करता हूं कि राजनीतिक तापमान को कम किया जाए। राजनीति टकराव नहीं है, यह कभी भी एकतरफा नहीं हो सकती।"
संसद के आगामी मानसून सत्र में सार्थक चर्चाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए धनखड़ ने कहा, "हमें दृढ़ रहना होगा। हमें अपने दृष्टिकोण पर यकीन करना होगा। लेकिन, दूसरे के दृष्टिकोण का भी सम्मान करना होगा। अगर हम अपने दृष्टिकोण पर भरोसा करते हैं और सोचते हैं, 'मैं ही सही हूं और बाकी सब गलत हैं' - यह लोकतंत्र नहीं है। यह हमारी संस्कृति नहीं है। यह अहंकार है। हमें अपने अहंकार पर नियंत्रण रखना होगा। हमें यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि दूसरा व्यक्ति अलग दृष्टिकोण क्यों रखता है। यही हमारी संस्कृति है। भारत ऐतिहासिक रूप से संवाद, वाद-विवाद और विचार-विमर्श के लिए जाना जाता है। आजकल, हम संसद में यह सब होते नहीं देखते। मुझे लगता है कि आगामी सत्र महत्वपूर्ण होगा। मुझे पूरी आशा है कि सार्थक चर्चाएं और गंभीर विचार-विमर्श होंगे जो भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।"
उन्होंने कहा, "यह जरूरी नहीं है कि सब कुछ सही हो। हम ऐसे समय में नहीं रहेंगे, जहां सब कुछ सही हो। किसी भी समय कुछ क्षेत्रों में कमियां होंगी। इसके साथ ही सुधार की गुंजाइश सदैव रहेगी। यदि कोई सुधार का सुझाव देता है, तो वह निंदा नहीं है। यह आलोचना नहीं है, बल्कि आगे के विकास के लिए एक सुझाव है। इसलिए, मैं सभी राजनीतिक दलों से रचनात्मक राजनीति करने की अपील करता हूं।"