क्या नेहरू ने वंदे मातरम के दो टुकड़े किए, यह तुष्टीकरण देश के विभाजन में बदला?
सारांश
Key Takeaways
- अमित शाह ने वंदे मातरम पर महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया।
- तुष्टीकरण की नीति ने देश के विभाजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- कांग्रेस का इतिहास वंदे मातरम के संदर्भ में विवादास्पद रहा है।
- राष्ट्रीय गीत और सांस्कृतिक पहचान के संदर्भ में वंदे मातरम का महत्वपूर्ण स्थान है।
- भविष्य में वंदे मातरम के गान को संसद में पुनर्जीवित करने की संभावनाएं हैं।
नई दिल्ली, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को राज्यसभा में वंदे मातरम पर चर्चा की शुरुआत की। यह चर्चा वंदे मातरम के 150वें वर्ष के अवसर पर की गई है।
उन्होंने कहा कि आज वंदे मातरम का 150वां वर्ष है। हर महत्वपूर्ण रचना का विशेष वर्ष हमारे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। जब वंदे मातरम का 50वां वर्ष आया था, तब देश स्वतंत्र नहीं हुआ था। 1937 में वंदे मातरम की स्वर्ण जयंती मनाई गई थी, उस समय जवाहरलाल नेहरू जी ने वंदे मातरम को दो टुकड़ों में बांटने का कार्य किया था।
गृह मंत्री ने आगे कहा कि 50वें वर्ष में वंदे मातरम को सीमित करने का निर्णय तुष्टीकरण की नीति का आरंभ था, जो आगे जाकर देश के विभाजन का कारण बना। उन्होंने कहा, "मेरे जैसे कई लोगों का मानना है कि यदि वंदे मातरम को दो टुकड़े नहीं किया जाता, तो देश का विभाजन नहीं होता।"
अमित शाह ने कहा कि यदि ऐसा नहीं होता, तो आज हमारा देश पूर्ण होता। सभी को विश्वास था कि वंदे मातरम के 100 साल मनाए जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इंदिरा गांधी ने वंदे मातरम बोलने वाले कई लोगों को जेल में डाल दिया। देश में आपातकाल लागू किया गया और कई व्यक्तियों को कैद किया गया।
अमित शाह ने सदन में बताया कि जब वंदे मातरम के 100 साल पूरे हुए, तो पूरे देश को बंदी बना लिया गया। जब वंदे मातरम के 150 वर्ष पर लोकसभा में चर्चा हुई, तो कांग्रेस की स्थिति देखिए; जिस पार्टी के अधिवेशनों की शुरुआत रवींद्रनाथ टैगोर ने वंदे मातरम गाकर की थी, उसके महिमामंडन के लिए चर्चा के समय गांधी परिवार के सदस्य सदन में अनुपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि वंदे मातरम का विरोध नेहरूकांग्रेस नेतृत्व की जड़ें हैं। इस दौरान कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने अमित शाह के इस बयान पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि एक प्रमुख कांग्रेस नेता ने कहा कि वंदे मातरम पर चर्चा की कोई आवश्यकता नहीं है। यह पूरी बात रिकॉर्ड पर है।
उन्होंने कहा कि जिस गीत को महात्मा गांधी ने राष्ट्र की आत्मा से जोड़ा, विपिन चंद्र पाल ने कहा कि वंदे मातरम राष्ट्रभक्ति और कर्तव्य दोनों की अभिव्यक्ति करता है, उसी वंदे मातरम को कांग्रेस ने विभाजित किया। वंदे मातरम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हमारे स्वतंत्रता संग्राम को गति दी।
गृह मंत्री ने सदन को बताया कि श्यामजी कृष्ण वर्मा, मैडम भीकाजी कामा और वीर सावरकर द्वारा निर्मित ध्वज पर स्वर्णिम अक्षरों में एक ही नाम था, ‘वंदेमातरम’। उन्होंने कहा कि गुलामी के समय 1936 में जर्मनी के बर्लिन ओलंपिक में हमारी हॉकी टीम को प्रेरणा की आवश्यकता थी, तब कोच ने वंदे मातरम का गान करवाया और हम स्वर्ण पदक लेकर आए।
उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और यह देश अपनी संस्कृति पर आधारित होना चाहिए, पाश्चात्य संस्कृति पर नहीं। इसी आधार पर भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ है। उन्होंने बताया कि कांग्रेस ने संसद में वंदे मातरम के गान को समाप्त करवा दिया। 1992 में भाजपा सांसद राम नाइक ने वंदे मातरम को संसद में फिर से गाने का मुद्दा उठाया।
उस समय नेता प्रतिपक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा के स्पीकर से कहा कि इस महान सदन के अंदर वंदे मातरम का गान होना चाहिए, क्योंकि संविधान सभा ने इसे स्वीकार किया है। फिर लोकसभा ने सर्वानुमति से वंदे मातरम का गान किया। वंदे मातरम के गान के समय भारतीय जनता पार्टी का कोई सांसद सम्मान से खड़ा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वंदे मातरम के गान के समय विपक्ष के कई सांसद बाहर चले जाते हैं। कई सांसदों ने कहा कि हम वंदे मातरम नहीं गाएंगे।