क्या पप्पू यादव ने जातिगत जनगणना पर केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाए?

सारांश
Key Takeaways
- जातिगत जनगणना का मुख्य उद्देश्य आर्थिक स्थिति को सामने लाना है।
- पप्पू यादव ने राजनीतिक अवसर तलाशने की कोशिशों को नकारा।
- उच्च जातियों में भी आर्थिक रूप से कमजोर लोग हैं।
- केंद्र सरकार का निर्णय राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
- सभी पक्षों को सच्चाई के साथ योगदान देना चाहिए।
नई दिल्ली, 17 जून (राष्ट्र प्रेस)। निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना के संदर्भ में जारी अधिसूचना पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि 'यह पब्लिक है, सब जानती है'। आप पब्लिक को मूर्ख नहीं बना सकते हैं।
उन्होंने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि राजद का यह दावा कि उनके दबाव में केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना का निर्णय लिया है, पूरी तरह से गलत है।
पप्पू यादव ने स्पष्ट किया कि इस मामले में श्रेय लेने का कोई सवाल नहीं है। यदि कोई ऐसा करने की कोशिश कर रहा है, तो यह राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है।
उन्होंने जातिगत जनगणना की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह किस प्रकार की जातिगत जनगणना है? आपकी भागीदारी और सहभागिता का कोई जिक्र नहीं है। क्या इन लोगों को भारत की जनता मूर्ख समझी हुई है?
उन्होंने कहा कि सही मायनों में जातिगत जनगणना तेलंगाना में हुई है, जहां सब कुछ निर्धारित प्रक्रिया के तहत किया गया। हमें इस स्थिति को जाति के दृष्टिकोण से देखने से बचना चाहिए और यह देखना चाहिए कि कौन सा वर्ग दबा हुआ है।
उन्होंने कहा कि ऊंची जाति में भी कई लोग गरीब हैं, जिनके बच्चे संसाधनों के अभाव में अपनी क्षमता को प्राप्त नहीं कर पाते। जातिगत जनगणना का उद्देश्य विभिन्न जातियों की आर्थिक स्थिति को सामने लाना है।
उन्होंने राजद पर भी तंज कसा कि जब आप सत्ता में थे, तब जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराई? अब आप श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं।
राहुल गांधी ने भी जातिगत जनगणना को लेकर चैलेंज किया था और कहा था कि केंद्र सरकार को इसे कराना ही होगा।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जातिगत जनगणना कराने जा रही है, लेकिन यह भी सच है कि भाजपा और आरएसएस की जातिगत जनगणना का स्वरूप अलग है।