अखुरथ संकष्टी चतुर्थी: भगवान गणेश की पूजा कैसे करें?
सारांश
Key Takeaways
- संकष्टी चतुर्थी का पूजा विधान महत्वपूर्ण है।
- भगवान गणेश की पूजा से ग्रहबाधा का निवारण होता है।
- संकटों से मुक्ति के लिए चंद्रमा को अर्घ्य देना आवश्यक है।
मुंबई, 7 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाई जाने वाली संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है, विशेषकर पौष माह में मनाई जाने वाली 'अखुरथ संकष्टी चतुर्थी' जो भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन विधिपूर्वक भगवान गणेश की पूजा का आयोजन किया जाता है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, सोमवार को सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में स्थित रहेंगे। इस तिथि पर अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा, जबकि राहुकाल का समय सुबह 8 बजकर 20 मिनट से 9 बजकर 37 मिनट तक होगा।
पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को अखुरथ संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन गजानन की पूजा करने से साधक हर कार्य में सफलता प्राप्त करता है। माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर यह व्रत रख सकती हैं।
इस व्रत की शुरुआत के लिए जातक को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
भगवान गणेश की प्रतिमा के सामने दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करें तथा श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रखकर बाकी प्रसाद में वितरित करें।
पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। शाम को गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है।
संकटों से मुक्ति के लिए चतुर्थी की रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए “सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥” मंत्र बोलकर जल अर्पित करें। चतुर्थी का व्रत रखने से ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष समाप्त होते हैं।