क्या हर जगह विवाद करना भाजपा का वैचारिक दिवालियापन है: पवन खेड़ा?
सारांश
Key Takeaways
- पवन खेड़ा ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
- बिहार में 20 वर्षों से विश्वासघात हुआ है।
- महागठबंधन ने अपना घोषणापत्र जारी किया है।
- राहुल गांधी का बिहार दौरा महत्वपूर्ण है।
- भाजपा के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है।
पटना, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार में विधानसभा चुनाव के चलते देश का सियासी पारा ऊंचाई पर है। सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा कि पिछले 20 वर्षों में बिहार के हर वर्ग के साथ विश्वासघात हुआ है।
पवन खेड़ा ने बताया कि आज उस विश्वासघात को समाप्त करने और उसका समाधान निकालने का रास्ता प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से हर जगह विवाद उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता है, यह उनकी संकीर्णता और विचारों के दिवालियापन को दर्शाता है। उनके पास देने के लिए कोई ठोस बात नहीं है।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन ने अपना घोषणापत्र जारी किया। पवन खेड़ा ने कहा कि आपने देखा है कि महागठबंधन ने पहले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा की और फिर घोषणापत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि जनता देख रही है कि बिहार के लिए कौन गंभीर है और कौन नहीं।
इससे पहले, पवन खेड़ा ने दावा किया कि पिछले 20 वर्षों में एनडीए ने जनता को केवल धोखा दिया है। इस बिहार चुनाव में महागठबंधन का घोषणापत्र जनता के साथ हुए धोखे को सुधारने का रास्ता होगा।
कांग्रेस के चुनावी अभियान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी 29 अक्टूबर को बिहार आ रहे हैं। इसके बाद सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कई कार्यक्रम निर्धारित हैं।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को 'जननायक' कहे जाने पर उपजे विवाद पर खेड़ा ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर से कोई तुलना नहीं है, वे देश के महान नेता हैं। हम उनसे कोई तुलना नहीं कर रहे। यह विवाद उत्पन्न करने की कोशिश भाजपा करती है। भाजपा के पास दूसरा मुद्दा नहीं है।
उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि हर जगह विवाद करना भाजपा के वैचारिक दिवालियापन को दिखाता है। उनके पास कोई ठोस बात नहीं है, केवल संकीर्णता है।
राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले एसआईआर के बारे में खेड़ा ने कहा कि बिहार में जो एसआईआर हुआ, उसके लिए बार-बार सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा, क्योंकि चुनाव आयोग की नियत पर संदेह था। आयोग ने डोर-टू-डोर कैंपेन नहीं किया, नए वोटर नहीं जोड़े, जबकि 65 लाख वोट काटे। उन्होंने कहा कि 2003 में जारी एसआईआर के दिशा-निर्देशों को सार्वजनिक करने और उन पर अमल करना आवश्यक है।