क्या सदन में बहस होती है, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं होती? : सांसद पप्पू यादव
सारांश
Key Takeaways
- संसद में बहस होती है, लेकिन कार्रवाई नहीं होती।
- चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर सवाल।
- 69 लाख वोटरों के नाम काटने का आरोप।
- गड़बड़ियों का निशाना गरीब और दलित वर्ग।
- लोकतंत्र के लिए खतरनाक निर्णय।
नई दिल्ली, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के पूर्णिया से सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने संसद के कामकाज पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि उन्हें समझ नहीं आता कि यह लेजिस्लेटिव हाउस है या कोई सर्कस। उनका कहना है कि सदन में बहस और चर्चा होती है, लेकिन उस पर कोई ठोस कार्रवाई कभी नहीं होती।
उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग समेत कई संवैधानिक संस्थाएं अब पहले जैसी स्वतंत्र नहीं रह गई हैं, बल्कि गिरवी रख दी गई हैं और एक तरह की मोनोपॉली ने पूरे सिस्टम को घेर लिया है। देश की जनता जैसे कैद होकर रह गई है और लोग अपने अधिकारों से वंचित महसूस कर रहे हैं।
उन्होंने इंडिगो एयरलाइंस के हालिया मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा कि हालात हर दिशा में बिगड़ते जा रहे हैं।
पप्पू यादव के अनुसार, चुनाव आयोग अब एक वर्कर जैसा कार्य कर रहा है, जबकि उससे एक निष्पक्ष संस्था होने की उम्मीद थी।
उन्होंने एक गंभीर आरोप लगाया कि लाखों वोटरों के नाम गलत तरीके से काटे गए हैं। उनका कहना है कि लिंक न जुड़ने या आधार अपडेट न होने जैसी तकनीकी वजहों को बहाना बनाकर वोटरों को सूची से बाहर कर दिया गया। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि यह गड़बड़ी सिर्फ गरीब, दलित, मजदूर और प्रवासी लोगों के नामों पर ही क्यों दिखी? अमीर या ऊंची जाति के लोगों के नाम क्यों नहीं कटे?
सांसद पप्पू यादव ने बीएलओ की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि अधिकतर बीएलओ न तो गांव गए, न लोगों से फॉर्म भरवाए, न किसी तरह की सही जांच की। उनका दावा है कि पहले से ही तय कर लिया गया था कि किन-किन वर्गों के करीब 69 लाख लोगों के नाम काटने हैं और उसी हिसाब से कार्रवाई की गई।
पप्पू यादव के अनुसार, यह सब संविधान के खिलाफ है, क्योंकि आधार कार्ड कहीं भी यह नहीं कहता कि किसी को सिर्फ आधार अपडेट न होने की वजह से वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि किसी एक पार्टी को लाभ पहुंचाने और चुनावी फायदे के लिए ऐसे फैसले लेना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग का काम देश हित में होना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक दल के लिए। वोट देना लोगों का बुनियादी अधिकार है और उसे इस तरह छीना जाना बेहद गलत है।