क्या सज्जाद हुसैन सिने जगत पर मैंडोलिन का जादू चलाने वाले अनोखे संगीतकार थे?

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क्या सज्जाद हुसैन सिने जगत पर मैंडोलिन का जादू चलाने वाले अनोखे संगीतकार थे?

सारांश

सज्जाद हुसैन, जिनका संगीत आज भी लोगों के दिलों में धड़कता है, एक अद्वितीय संगीतकार थे। उनके मौलिकता और मैंडोलिन की कला ने हिंदी सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी। जानें उनकी अनसुनी कहानियों और संगीत के जादू के बारे में।

Key Takeaways

  • सज्जाद हुसैन का संगीत आज भी जीवंत है।
  • उनकी रचनाएं संगीत प्रेमियों के दिलों में बसी हुई हैं।
  • वे अपने संगीत के प्रति सख्त थे और परफेक्शनिस्ट थे।
  • सज्जाद का मौलिकता से भरा संगीत शैली अद्वितीय थी।
  • उन्होंने हिंदी सिनेमा को अनूठी धुनें प्रदान कीं।

मुंबई, 20 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम काल में एक ऐसी अद्वितीय शख्सियत ने अपनी धुनों से अमिट छाप छोड़ी, जिन्हें ‘मैंडोलिन का जादूगर’ कहा जाता है। एक मौलिक संगीतकार सज्जाद हुसैन की रचनाएं आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं। उनकी पुण्यतिथि 21 जुलाई को है।

15 जून 1917 को मध्य प्रदेश के सीतामऊ में जन्मे सज्जाद हुसैन का संगीत से गहरा रिश्ता बचपन से ही था। उनके पिता, जो एक शौकिया सितार वादक थे, ने सज्जाद को इस वाद्य यंत्र की बारीकियों से अवगत कराया। सज्जाद का मन वाद्य यंत्रों में ऐसा रमा कि किशोरावस्था तक उन्होंने सितार, वीणा, वायलिन, बांसुरी, पियानो और मैंडोलिन जैसे 20 से अधिक वाद्य यंत्रों में महारत हासिल कर ली। खासकर मैंडोलिन को उन्होंने सितार की तरह बजाया, जिसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय रागों के साथ मिलाकर अनोखी धुनें तैयार कीं। उनकी यह कला हिंदी सिनेमा में दुर्लभ थी।

सज्जाद का करियर 1944 में फिल्म ‘दोस्त’ से स्वतंत्र संगीतकार के रूप में शुरू हुआ। हालांकि, असली पहचान 1950 की फिल्म ‘खेल’ से मिली, जहां लता मंगेशकर की आवाज में गाया गया ‘भूल जा ऐ दिल मोहब्बत का फसाना’ दशक के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक बन गया। 1951 की ‘हलचल’ का गीत ‘आज मेरे नसीब ने मुझको रुला-रुला दिया’ को उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना माना जाता है। सज्जाद खुद इसे अपनी सबसे प्रिय रचना मानते थे। 1952 में आई ‘संगदिल’ उनकी सबसे सफल फिल्म रही। इसका गीत ‘वो तो चले गए ऐ दिल याद से उनकी प्यार कर’ दादरा ताल में खमाज और कलावती रागों का मिश्रण था, जो आज भी संगीत प्रेमियों की जुबान पर है। उनकी आखिरी चर्चित फिल्म ‘रुस्तम-सोहराब’ (1963) थी, जिसने उनके संगीत की गहराई को फिर से साबित किया।

सज्जाद की विशेषता उनकी मौलिकता थी। वे किसी से प्रेरित नहीं थे, बल्कि अपनी संगीतमय दुनिया खुद रचते थे। तकनीकी रूप से जटिल उनकी धुनें गायकों के लिए चुनौती थीं। लता मंगेशकर ने एक बार कहा था, “सज्जाद साहब का संगीत मेरे करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि है। ऐसा संगीत कोई और नहीं बना सका।”

सज्जाद हुसैन भारतीय फिल्म संगीत से जुड़ी एक अनूठी हस्ती थे, जिनके लिए न कोई आदर्श था न कोई प्रेरणा का स्रोत। उन्होंने खुद ही संगीत की अपनी दुनिया बनाई और मैंडोलिन में महारत हासिल की। वे अपने संगीत को लेकर सख्त थे और लगभग एक परफेक्शनिस्ट थे। कई बार उनका यह स्वभाव फिल्म इंडस्ट्री के दस्तूर से मेल नहीं खाता था, जिससे उन्हें एक अड़ियल इंसान का दर्जा भी मिला।

हालांकि, यह कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें भारत की स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने स्वीकारा और खंडन भी किया। सज्जाद के साथ काम कर चुकीं लता मानती थीं कि वह एक अद्भुत संगीतकार थे। वह खुद अपने लिए प्रेरणा बनना चाहते थे और कुछ अलग करके दिखाना था। इस बात को सज्जाद ने भी सहजता से स्वीकार किया और अपनी तपस्या को लेकर उनमें स्वाभिमान भी नजर आया। यह स्वाभिमान उनके जीवन में हमेशा रहा।

अक्सर चीजें उनके परफेक्शन के हिसाब से नहीं होती थीं तो वे नाराज हो जाते थे। लता ने एक बार बताया था कि अगर कोई गायक अच्छा नहीं गा पाता था या वादक साज के साथ मेल नहीं मिलाता था तो सज्जाद कठोरता से केवल इतना कह देते थे, “अरे भाई कम से कम साज के साथ तो मेल बैठाओ।” लता बताती हैं कि बात अक्सर इतनी ही होती थी, लेकिन लोगों ने उनके स्वभाव को कई बार ठीक से नहीं समझा। इसके बावजूद सज्जाद को अक्खड़ संगीतकार का टैग लगा रहा। वह केवल चुनिंदा फिल्मों में ही संगीत दे पाए।

दो दशकों के करियर में उनकी रचनाएं संख्या में कम थीं, लेकिन गुणवत्ता में अधिक थीं। सज्जाद ने कहा था कि चाहे उनकी रचना सफल रही हो या दर्शकों का उसे प्यार मिला हो, उन्होंने अपने हर काम को अलग अंदाज में किया। उनका काम अनूठा था और सज्जाद को इस पर हमेशा गर्व रहा। सज्जाद का स्वाभिमान उनकी पहचान थी। वे अपनी शर्तों पर काम करते थे। वह अपने आप में पूरी टीम थे। उनके संगीत में भावनाओं की गहराई और तकनीकी जटिलताएं थीं, जो उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे अनूठे संगीतकारों में शुमार करती हैं।

21 जुलाई 1995 को सज्जाद हुसैन इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनकी धुनें हमेशा के लिए जीवंत हैं।

Point of View

हमें सज्जाद हुसैन जैसे संगीतकारों की कद्र करनी चाहिए, जिन्होंने भारतीय फिल्म संगीत को नई पहचान दी। उनकी मौलिकता और परफेक्शन के प्रति समर्पण हमें प्रेरित करता है। हमें ऐसे कलाकारों को याद रखना चाहिए जो हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।
NationPress
20/07/2025

Frequently Asked Questions

सज्जाद हुसैन का जन्म कब हुआ?
सज्जाद हुसैन का जन्म 15 जून 1917 को मध्य प्रदेश के सीतामऊ में हुआ था।
उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ कौन सी हैं?
उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में 'भूल जा ऐ दिल मोहब्बत का फसाना' और 'आज मेरे नसीब ने मुझको रुला-रुला दिया' शामिल हैं।
सज्जाद हुसैन को किस नाम से जाना जाता है?
उन्हें 'मैंडोलिन का जादूगर' कहा जाता है।
उनकी पुण्यतिथि कब है?
उनकी पुण्यतिथि 21 जुलाई को होती है।
सज्जाद हुसैन का संगीत शैली क्या थी?
उनका संगीत हिंदुस्तानी शास्त्रीय रागों के साथ मौलिक धुनों का मिश्रण था।