क्या शंख प्रक्षालन शरीर की गहराई से सफाई का उत्तम तरीका है?
सारांश
Key Takeaways
- शंख प्रक्षालन से शरीर की गहराई से सफाई होती है।
- इससे कब्ज, गैस, और एसिडिटी जैसी समस्याएं दूर होती हैं।
- इसकी प्रक्रिया मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होती है।
- सही तरीके से किया गया अभ्यास रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- सावधानी बरतना अत्यंत आवश्यक है।
नई दिल्ली, 6 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। शरीर की केवल बाहरी सफाई नहीं, बल्कि आंतरिक सफाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। योग पद्धति और आयुर्वेद में डिटॉक्स के कई प्रभावी तरीके बताए गए हैं, जिनमें से एक प्रमुख प्रक्रिया है शंख प्रक्षालन।
हठयोग की सबसे शक्तिशाली शुद्धि क्रियाओं में से एक, शंख प्रक्षालन एक प्राकृतिक विधि है, जिसमें मुंह से गुदा तक आंतों को धोया जाता है। इसे पाचन तंत्र को प्रक्षालित करने का कार्य कहा जाता है। इसे वारीसार धौति और कायाकल्प क्रिया के नाम से भी जाना जाता है। इस विधि से शरीर की गहराई से सफाई होती है। इसके लिए तैयारी एक दिन पहले से शुरू करनी होती है, जिसमें हल्का भोजन जैसे दाल या खिचड़ी शामिल किया जाता है।
मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ योगा इस विधि के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। अभ्यास कैसे करें, इसकी जानकारी भी दी जाती है। इसके लिए सुबह खाली पेट गुनगुने पानी में स्वाद अनुसार सेंधा नमक मिलाकर तेजी से 2 गिलास पानी पीना चाहिए। इसके बाद ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्रासन, तिर्यक भुजंगासन, उदरकार्षण और कागासन जैसे 6 विशेष आसनों का अभ्यास करें। फिर से 2 गिलास पानी पिएं और आसनों को दोहराएं। यह प्रक्रिया तब तक जारी रखें जब तक शौच के दौरान पानी पूरी तरह से साफ न आ जाए।
शंख प्रक्षालन में आमतौर पर 4 से 6 लीटर पानी का उपयोग होता है। अंत में, 30 से 40 मिनट तक विश्राम करें और केवल मूंग दाल-चावल की हल्की घी वाली खिचड़ी खाएं।
इस क्रिया से पुरानी कब्ज, गैस, एसिडिटी, और अपच जैसी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। आंतों में जमा सालों का मैल और विषाक्त पदार्थ निकल जाता है, जिससे पेट हल्का हो जाता है। इसके अतिरिक्त, इससे त्वचा में निखार आता है, मुंहासों और दाग कम होते हैं, वजन तेजी से घटता है, पाचन शक्ति में सुधार होता है, और रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। मानसिक तनाव और चिड़चिड़ापन भी दूर होता है, जिससे नींद गहरी आती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि शंख प्रक्षालन का अभ्यास महीने में 1 या 2 बार करना चाहिए। हालाँकि, कुछ लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए। हाई ब्लड प्रेशर, अल्सर, हर्निया, किडनी की गंभीर बीमारी या प्रेगनेंसी के दौरान इसका अभ्यास बिल्कुल नहीं करना चाहिए। यह क्रिया केवल प्रशिक्षित योग गुरु की देखरेख में या डॉक्टर की सलाह से ही करनी चाहिए। इसके बाद अगले 24-48 घंटे तक चाय, कॉफी, दूध, और मसालेदार भोजन से पूरी तरह परहेज करना चाहिए।