क्या महंगे साबुन के बजाय उबटन का इस्तेमाल करना चाहिए?

सारांश
Key Takeaways
- उबटन
- प्राकृतिक सामग्री का उपयोग
- त्वचा को नमी प्रदान करना
- साइड इफेक्ट्स की संभावना कम
- गहराई से सफाई करता है
नई दिल्ली, 11 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आयुर्वेद में शरीर और त्वचा की देखभाल के लिए प्राकृतिक उपायों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। आजकल, जब लोग कठोर रसायनों से बने साबुन और ब्यूटी प्रोडक्ट्स पर निर्भर हो रहे हैं, तब आयुर्वेद हमें यह याद दिलाता है कि असली सुंदरता प्रकृति की गोद में छिपी है। विशेष रूप से, उबटन का उपयोग भारतीय परंपरा का एक अनिवार्य हिस्सा रहा है। यह सिर्फ एक बाहरी सौंदर्य प्रसाधन नहीं है, बल्कि त्वचा की संपूर्ण देखभाल का एक वैज्ञानिक और प्राकृतिक तरीका है।
साबुन त्वचा की सतह से गंदगी को तो हटा देता है, लेकिन इसके साथ ही यह त्वचा के प्राकृतिक तेल और नमी को भी नष्ट कर देता है। इससे त्वचा रूखी, बेजान और कई बार संवेदनशील हो जाती है। वहीं, उबटन पीएच-फ्रेंडली होता है और त्वचा के नैचुरल ऑयल को सुरक्षित रखता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके नियमित उपयोग से त्वचा साफ, मुलायम और चमकदार बनती है, बिना किसी केमिकल अवशेष के।
उबटन बनाने के लिए कई प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं जैसे बेसन, हल्दी, चंदन और दूध। उबटन तैयार करने के लिए सभी सामग्रियों को मिलाकर एक पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट को अपनी त्वचा पर हल्के हाथों से लगाएं और फिर पानी से धोकर साफ करें। आपको बिना किसी रासायनिक अवशेष के एक मुलायम, चमकदार रंगत प्राप्त होगी।
आयुर्वेद के अनुसार, बेसन त्वचा की गहराई से सफाई करता है और डेड स्किन को हटाता है। हल्दी में एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो त्वचा को संक्रमण से बचाते हैं और नैचुरल ग्लो प्रदान करते हैं। चंदन त्वचा को ठंडक देता है। वहीं दूध में मौजूद लैक्टिक एसिड त्वचा को नमी प्रदान करता है और टैनिंग को कम करता है। उबटन का नियमित उपयोग त्वचा को डिटॉक्सिफाई करने में मदद करता है। यह त्वचा की सतह से धूल, प्रदूषण और डेड सेल्स को हटाकर नई कोशिकाओं को पुनर्जीवित करता है। खास बात यह है कि उबटन पूरी तरह से प्राकृतिक होता है, इसलिए इसके उपयोग से किसी भी प्रकार के साइड इफेक्ट्स की संभावना बहुत कम रहती है।