क्या आप जानते हैं ध्यानचंद के छोटे भाई रूप सिंह के बारे में, जिन्होंने देश को दो ओलंपिक में गोल्ड दिलाया?

सारांश
Key Takeaways
- रूप सिंह का जन्म 8 सितंबर 1908 को जबलपुर में हुआ।
- उन्होंने 1932 और 1936 ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीते।
- रूप सिंह ने 1936 ओलंपिक के फाइनल में 4 गोल किए थे।
- रूप सिंह और ध्यानचंद दोनों ने 11-11 गोल किए थे।
- रूप सिंह का निधन 16 दिसंबर 1977 को हुआ।
नई दिल्ली, 7 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आज की क्रिकेट दुनिया में जो प्रतिष्ठा भारतीय क्रिकेट टीम को प्राप्त है, वही एक समय भारतीय हॉकी टीम के पास भी थी। ओलंपिक जैसे महत्वपूर्ण मंच पर भारतीय हॉकी टीम का सामना किसी अन्य टीम से नहीं होता था। जब भी भारतीय हॉकी के स्वर्णिम युग की चर्चा होती है, मेजर ध्यानचंद का नाम हमेशा सामने आता है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि उस समय कई अन्य खिलाड़ी भी थे जिन्होंने भारत को हॉकी में विश्व चैंपियन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें से एक थे ध्यानचंद के छोटे भाई रूप सिंह।
रूप सिंह का जन्म 8 सितंबर 1908 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुआ था। वे बचपन से ही हॉकी के प्रति उत्साही थे। इसी जुनून के चलते वे भारतीय हॉकी टीम में शामिल हुए और 1932 और 1936 ओलंपिक में देश को गोल्ड मेडल दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई।
1932 का ओलंपिक अमेरिका के लॉस एंजेलिस में आयोजित हुआ था, जहां भारतीय टीम ने जापान को 11-1 और अमेरिका को 24-1 से हराकर गोल्ड जीता। जापान के खिलाफ रूप सिंह ने 3 और अमेरिका के खिलाफ 10 गोल किए।
1936 का ओलंपिक जर्मनी में हुआ, जिसमें भारतीय टीम ने फिर से गोल्ड जीता। इस बार, ध्यानचंद की कप्तानी में टीम ने लीग मैच में जापान को 9-0, हंगरी को 4-0 और अमेरिका को 7-0 से हराया। सेमीफाइनल में भारत ने फ्रांस को 10-0 से हराया और फाइनल में जर्मनी को 8-1 से हराकर गोल्ड अपने नाम किया। फाइनल में रूप सिंह ने 4 गोल किए थे।
फाइनल के बाद, हिटलर भारतीय टीम को मेडल पहनाने आए और रूप सिंह को उनके खेल के लिए सराहा। उन्होंने ध्यानचंद और रूप सिंह को जर्मनी में नौकरी का प्रस्ताव भी दिया, जिसे दोनों भाइयों ने ठुकरा दिया।
रूप सिंह का योगदान हॉकी में ध्यानचंद से कम नहीं था। वे दिल से खेलते थे और विरोधी टीम को कोई मौका नहीं देते थे। ध्यानचंद भी उन्हें एक बेहतरीन खिलाड़ी मानते थे।
जर्मनी के म्यूनिख में एक सड़क का नाम रूप सिंह के नाम पर रखा गया है और ग्वालियर में उनके नाम पर एक क्रिकेट स्टेडियम भी है। हॉकी के अलावा, उन्होंने लॉन टेनिस और क्रिकेट भी खेला और ग्वालियर स्टेट का प्रतिनिधित्व रणजी ट्रॉफी में किया। इस महान खिलाड़ी का निधन 16 दिसंबर 1977 को ग्वालियर में हुआ।