क्या तलवारबाजी आत्मरक्षा की कला है, जो ओलंपिक खेल बन गई?

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क्या तलवारबाजी आत्मरक्षा की कला है, जो ओलंपिक खेल बन गई?

सारांश

तलवारबाजी एक प्राचीन कला है, जो न केवल आत्मरक्षा के लिए विकसित की गई थी, बल्कि अब यह एक वैश्विक खेल बन चुकी है। जानिए इसके इतिहास और विकास के बारे में।

Key Takeaways

  • तलवारबाजी एक प्राचीन कला है जो अब एक ओलंपिक खेल बन चुकी है।
  • यह आत्मरक्षा के लिए विकसित की गई थी।
  • भारत में इसकी प्रगति और भविष्य उज्ज्वल है।
  • तलवारबाजी के तीन प्रकार: फॉयल, साबरे, एपी
  • यह खेल युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

नई दिल्ली, 12 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। तलवारबाजी एक प्राचीन कला है, जो कभी आत्मरक्षा और शिकार के लिए विकसित की गई थी। युद्ध के मैदानों में योद्धाओं ने तलवार के माध्यम से अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया। महाभारत और रामायण में भी तलवार के उपयोग का उल्लेख मिलता है।

खेल के रूप में तलवारबाजी या 'फेंसिंग' का सबसे पुराना प्रमाण लगभग 1200 ईसा पूर्व के मिस्र में मिलता है, जहाँ तलवारबाजों को अभ्यास करते हुए दर्शाया गया है। प्राचीन बेबीलोन, यूनान, फारस, और रोम में विभिन्न डिजाइनों की तलवारों का इस्तेमाल किया जाता था।

जबकि बंदूक और बारूद के युग में तलवारों का उपयोग कम हो गया, तलवारबाजी की एक समृद्ध परंपरा बनी रही। 14वीं और 15वीं शताब्दी में, जर्मनी और इटली में इसे खेल के रूप में नया रूप मिला।

जर्मन फेंसिंग मास्टर्स ने इस कला को संपूर्णता प्रदान की, जिसमें 1478 में फ्रैंकफर्ट की मार्क्सब्रूडर सबसे प्रसिद्ध संस्था रही।

17वीं और 18वीं शताब्दी में 'फॉयल' का अविष्कार हुआ, जिसमें टारगेट एरिया के साथ नियम बनाए गए। तलवारबाज एक विशेष मास्क भी पहनता था।

1880 में पहली बार औपचारिक तलवारबाजी प्रतियोगिता आयोजित की गई। इसके 16 वर्ष बाद, 1896 में, एमेच्योर जिमनास्टिक एंड फेंसिंग एसोसिएशन ने खेल के लिए आधिकारिक नियम बनाए, और इसी वर्ष एथेंस ओलंपिक में तलवारबाजी को स्थान मिला।

तब तलवारबाजी के केवल तीन इवेंट थे, लेकिन अब उनकी संख्या बढ़कर 12 हो गई है, जिसमें पुरुषों और महिलाओं के व्यक्तिगत और टीम प्रतियोगिताएं शामिल हैं।

तलवारबाजी के तीन प्रकार हैं: फॉयल, साबरे, और एपी। 'फॉयल' में हल्के थ्रस्ट-टाइप ब्लेड का प्रयोग होता है, जबकि 'एपी' में भारी थ्रस्ट-टाइप ब्लेड का इस्तेमाल किया जाता है। 'साबरे' में एक हल्का कटिंग और थ्रस्ट-टाइप हथियार होता है।

तलवारबाजी के मुकाबले में प्वाइंट प्राप्त करने के लिए खिलाड़ी को प्रतिद्वंद्वी के शरीर के टारगेट एरिया पर अपनी तलवार को स्पर्श करना होता है। यह मुकाबले 14 मीटर लंबी और 1.5 से 2 मीटर चौड़ी पिस्ट (मैट) पर आयोजित होते हैं।

प्रत्येक स्पर्श पर एक अंक दिया जाता है। हर मुकाबला तीन मिनट के तीन राउंड में खेला जाता है, जहाँ प्रत्येक राउंड के बीच एक मिनट का ब्रेक होता है। यदि कोई तलवारबाज पिस्ट के अंतिम छोर से बाहर पैर रख देता है, तो प्रतिद्वंद्वी को अंक दिया जाता है।

व्यक्तिगत मैच में पहले 15 अंकों तक पहुंचने वाला तलवारबाज या तीसरे राउंड की समाप्ति तक सबसे आगे रहने वाला खिलाड़ी विजेता होता है।

भवानी देवी ने तलवारबाजी में ओलंपिक कोटा प्राप्त करने वाली पहली भारतीय बनकर इस खेल को नई ऊँचाइयों पर पहुंचाया है। भले ही वे ओलंपिक पदक न जीत सकीं, लेकिन उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया है।

तलवारबाजी में भारत का भविष्य उज्ज्वल नजर आता है। हाल के वर्षों में भारतीय खिलाड़ियों ने इस खेल में अद्वितीय प्रगति की है। भारत में अब फेंसिंग अकादमी, प्रशिक्षण सुविधाएँ, और सरकारी सहायता के माध्यम से इस खेल को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। आने वाले वर्षों में भारत एशियन गेम्स और ओलंपिक में पदक जीतने की मजबूत दावेदारी पेश कर सकता है।

Point of View

NationPress
12/11/2025

Frequently Asked Questions

तलवारबाजी का इतिहास क्या है?
तलवारबाजी का इतिहास प्राचीन मिस्र से शुरू होता है, जहाँ इसे एक कला के रूप में विकसित किया गया।
तलवारबाजी के कितने प्रकार होते हैं?
तलवारबाजी के तीन प्रमुख प्रकार हैं: फॉयल, साबरे, और एपी।
भारत में तलवारबाजी का भविष्य क्या है?
भारत में हाल के वर्षों में तलवारबाजी में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, और युवाओं को इसमें प्रोत्साहन दिया जा रहा है।