क्या 15 अगस्त 1950 को आजाद भारत ने पहली बार भूकंप के खौफनाक मंजर को देखा था?

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क्या 15 अगस्त 1950 को आजाद भारत ने पहली बार भूकंप के खौफनाक मंजर को देखा था?

सारांश

15 अगस्त 1950 को भारत ने एक विनाशकारी भूकंप का सामना किया। यह घटना आजादी की तीसरी वर्षगांठ पर हुई, जिसमें हजारों जिंदगियां गईं। जानें इस भूकंप की तीव्रता और उसके प्रभावों के बारे में।

Key Takeaways

  • भूकंप ने हजारों जिंदगियों को प्रभावित किया।
  • इसकी तीव्रता 8.6 थी, जो इसे ऐतिहासिक बनाती है।
  • भूकंप ने कई गांवों को नष्ट कर दिया।
  • भारत का अधिकांश हिस्सा भूकंप के जोखिम में है।
  • इस घटना से हमें प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है।

नई दिल्ली, 14 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भूकंप प्रकृति की सबसे विनाशकारी और अप्रत्याशित आपदाओं में से एक है, जो पल भर में न केवल जीवन को समाप्त कर देता है, बल्कि पर्यावरण और सभ्यता को भी तहस-नहस कर सकता है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है, देश में कई बार ऐसे अवसर आए जब भूकंप ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ा और अपने पीछे छोड़ दिए तबाही के निशान, जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।

15 अगस्त 1950 वह तारीख थी, जब देश आजादी की तीसरी सालगिरह मना रहा था। उस समय भारत के असम और तिब्बत क्षेत्र में 8.6 तीव्रता का भूकंप आया। यह भूकंप न केवल आजाद भारत का पहला बड़ा भूकंप था, बल्कि 20वीं शताब्दी के सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से एक था।

इसकी तीव्रता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विनाशकारी भूकंप ने हजारों लोगों की जान ले ली, गांवों को मलबे में बदल दिया और प्राकृतिक संतुलन को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, 15 अगस्त 1950 को असम में आए भूकंप की तीव्रता 8.6 थी, जिससे तिब्बत भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। यह 20वीं सदी का सबसे बड़ा भूकंप था और यह दो महाद्वीपीय प्लेटों के टकराव के कारण हुआ, जिसने इसे और भी विनाशकारी बना दिया।

भूकंप का प्रभाव इतना खतरनाक था कि मिश्मी और अबोरी पहाड़ियों में 70 से अधिक गांव पूरी तरह नष्ट हो गए। साथ ही असम में अनुमानित 1,500 से अधिक लोग मारे गए, जबकि तिब्बत में 4,800 से अधिक मौतें दर्ज की गईं। लेकिन मृतकों की संख्या को 20 से 30 हजार के बीच बताया जाता है।

इसके अलावा, भूकंप ने ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों के प्रवाह को भी बाधित किया, जिससे बाढ़ भी आ गई थी। भूकंप का उपकेंद्र तिब्बत के रीमा क्षेत्र और असम की मिश्मी हिल्स में होने की वजह से मिश्मी पहाड़ियों और आसपास के जंगलों में भूस्खलन और चट्टानों के गिरने से भी भारी नुकसान हुआ था। हालात ऐसे थे कि भूकंप ने प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ दिया और इसका सीधा प्रभाव पहाड़ों और नदियों पर पड़ा।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, देश ने पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े विनाशकारी भूकंप का सामना किया है, जिनमें मृतकों की संख्या हजारों में है। भारत के भूकंपीय मानचित्र के मुताबिक, देश का 59 प्रतिशत हिस्सा मध्यम से गंभीर भूकंप के जोखिम में है, जहां तीव्रता 7 या उससे अधिक के झटके आ सकते हैं। हिमालय क्षेत्र में 8.0 या उससे अधिक तीव्रता वाले बड़े भूकंप का खतरा बना रहता है। भारत में 1897 (शिलांग, 8.7), 1905 (कांगड़ा, 8.0), 1934 (बिहार-नेपाल, 8.3) और 1950 (असम-तिब्बत, 8.6) जैसे चार बड़े भूकंप आ चुके हैं।

Point of View

यह घटना न केवल एक प्राकृतिक आपदा थी, बल्कि यह एक चेतावनी भी थी कि हमें अपने पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन की रक्षा के लिए सतर्क रहना चाहिए। हमें इस तरह की आपदाओं से सीखने की जरूरत है और भविष्य में बेहतर तैयारी करनी चाहिए।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

15 अगस्त 1950 का भूकंप कितना शक्तिशाली था?
यह भूकंप 8.6 तीव्रता का था, जो 20वीं सदी का सबसे बड़ा भूकंप माना जाता है।
इस भूकंप में कितने लोगों की जान गई थी?
असम में लगभग 1,500 और तिब्बत में 4,800 से अधिक लोगों की जान गई थी, लेकिन कुल मृतकों की संख्या 20 से 30 हजार के बीच हो सकती है।
भूकंप के कारण क्या नुकसान हुआ था?
भूकंप ने गांवों को नष्ट कर दिया, भूस्खलन हुआ और ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह को बाधित किया।
भारत में भूकंप का खतरा कितना है?
भारत का 59 प्रतिशत हिस्सा मध्यम से गंभीर भूकंप के जोखिम में है।
भारत में पिछले बड़े भूकंप कब आए थे?
भारत में 1897, 1905, 1934 और 1950 में बड़े भूकंप आए थे।