क्या भारतीय संस्कृति में आत्मा का बंधन सर्वोच्च आदर्श है? : आरिफ मोहम्मद खान

सारांश
Key Takeaways
- भारतीय संस्कृति में आत्मा का बंधन महत्वपूर्ण है।
- दूसरों की पीड़ा को समझना आवश्यक है।
- देहदान एवं अंगदान को बढ़ावा देने की जरूरत है।
- स्वामी विवेकानंद के विचार प्रेरणादायक हैं।
- एकता एवं अखंडता पर ध्यान देना चाहिए।
पटना, 10 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भारतीय संस्कृति में जो उच्चतम आदर्श है, वह आत्मा का बंधन है, जिसे हम एकात्मता कहते हैं। इसकी मूल कल्पना यह है कि हम ऐसे मानस का विकास करें, जहां दूसरे की पीड़ा अपनी पीड़ा लगने लगे। इसका कारण यह है कि हम सब आत्मा के बंधन में बंधे हुए हैं।
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान रविवार को बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स में 'तृतीय राष्ट्रीय अंगदान दिवस एवं एकादश अंतर्राष्ट्रीय अंगदान दिवस' के अवसर पर दधीचि देहदान समिति के संकल्प एवं सम्मान समारोह कार्यक्रम में शामिल हुए।
उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम पूर्व उप मुख्यमंत्री और संस्थान के तत्कालीन मुख्य संरक्षक सुशील कुमार मोदी की स्मृति को समर्पित है। उन्होंने उनकी स्मृति को नमन किया। स्वामी विवेकानंद के वचनों का उल्लेख करते हुए कहा कि वे बार-बार कहते थे कि जिंदा तो वे हैं, जो दूसरों के लिए जिंदा रहते हैं, बाकी लोग तो मृतप्राय हैं।
उन्होंने कार्यक्रम में मरणोपरांत देहदान करने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा, "ऋषियों और मुनियों ने समानता से सवाल किया है और हमारा पूरा दर्शन भी इस प्रश्न के उत्तर से भरा है: मेरा वास्तविक स्वरूप क्या है? मैं कौन हूं? क्या यह शरीर है? सभी एक ही जवाब देते हैं, जो चीज धीरे-धीरे नष्ट हो रही है, वह केवल माया है। सत्य वह है, जो कभी नष्ट नहीं हो सकता। यह शरीर केवल मेरे वास्तविक स्वरूप का वाहक है, जो मैं हूं।"
राज्यपाल ने कहा कि देहदान एवं अंगदान के विषय को पूरे प्रदेश में एक अभियान का रूप दिया जाना चाहिए।
कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने राहुल गांधी के 'ऑपरेशन सिंदूर' पर उठाए जा रहे सवालों पर किसी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा, "हम आजाद देश में हैं। सभी से अपील करते हैं कि देश की एकता और अखंडता, स्वाभिमान, सुरक्षा जैसे विषयों पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए। हमें अपने आचार पर गौर करना चाहिए।"