क्या रघुवीर सहाय ने कविता और खबर के बीच की दूरी को मिटा दिया?

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क्या रघुवीर सहाय ने कविता और खबर के बीच की दूरी को मिटा दिया?

सारांश

रघुवीर सहाय की कविताएं न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उन्होंने समाचार और कविता के बीच की हदें भी मिटा दी हैं। उनकी रचनाएं आज भी समाज में गूंजती हैं और मानवता की पीड़ा को उजागर करती हैं। जानिए उनके योगदान और समकालीन यथार्थ में उनकी कविता का स्थान।

Key Takeaways

  • रघुवीर सहाय ने कविता में समाज की पीड़ा को उजागर किया।
  • उनकी रचनाएं खबरों के सौंदर्यशास्त्र पर आधारित हैं।
  • उन्होंने आधुनिक हिन्दी कविता को नया दृष्टिकोण दिया।
  • उनकी कविताएं आज भी प्रासंगिक हैं।
  • रघुवीर सहाय ने पत्रकारिता और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

नई दिल्ली, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्ष 1990 की तारीख थी 30 दिसंबर, जब हिन्दी साहित्य ने एक ऐसे कवि को खो दिया, जिसने कविता को समाचारों की सुर्खियों से निकालकर जनजीवन की पीड़ा का दर्पण बना दिया। उस अद्वितीय व्यक्तित्व का नाम है, रघुवीर सहाय। वे केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि आधुनिक हिन्दी कविता के संवेदनशील चेहरे थे, जिनकी दृष्टि सड़क, चौराहा, दफ्तर, संसद और बाजार तक फैली हुई थी।

कहा जा सकता है कि सहाय की हर कविता में खबर थी, लेकिन वह सनसनी नहीं थी।

रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर 1929 को लखनऊ में हुआ। उन्होंने अपनी संपूर्ण शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की और 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। पेशेवर पत्रकार के रूप में, उन्होंने प्रतीक में सहायक संपादक के तौर पर कार्य किया, आकाशवाणी के समाचार विभाग से जुड़े, और हैदराबाद से प्रकाशित पत्रिका कल्पना का संपादन किया। कई वर्षों तक उन्होंने दिनमान का संपादन भी किया। पत्रकारिता और साहित्यिक पत्रकारिता उनके रचनात्मक व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं।

कविता में उनका प्रवेश अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरे सप्तक के साथ हुआ। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उनकी कविता की जड़ें समकालीन यथार्थ में हैं। दूसरे सप्तक में अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा था कि विचारवस्तु का कविता में खून की तरह दौड़ते रहना कविता को जीवन और शक्ति देता है, और यह तभी संभव है जब हमारी कविता की जड़ें यथार्थ में हों।

रघुवीर सहाय का सौंदर्यशास्त्र खबरों का सौंदर्यशास्त्र है। उनकी भाषा पारदर्शी, टूक और निरावरण है। उनकी कविताओं में प्रतीकों और बिंबों का उलझाव नहीं है, बल्कि वक्तव्य, विवरण और संक्षेप-सार है। जैसे खबर में भाषा जितनी पारदर्शी होती है, उतनी ही उसकी संप्रेषणीयता बढ़ती है, वैसे ही रघुवीर सहाय कविता के लिए भी एक पारदर्शी भाषा लेकर आते हैं। रोजमर्रा की तमाम खबरें उनकी कविताओं में उतरकर मानवीय पीड़ा की अभिव्यक्ति बन जाती हैं।

उनके काव्य-संसार में आत्मपरक अनुभवों से अधिक जनजीवन के अनुभवों की रचनात्मक अभिव्यक्ति दिखाई देती है। सहाय मानते थे कि अखबार की खबरों के भीतर दबी और छिपी हुई अनेक खबरें होती हैं, जिनमें मानवीय पीड़ा दब जाती है। उस पीड़ा को सामने लाना कविता का दायित्व है। इसी दृष्टि के अनुरूप उन्होंने अपनी नई काव्य-भाषा विकसित की, अनावश्यक शब्दों से बचते हुए, भयाक्रांत अनुभवों की आवेगरहित अभिव्यक्ति के साथ। उन्होंने मुक्त छंद के साथ-साथ छंद में भी काव्य-रचना की और कई बार कथा या वृत्तांत के सहारे जीवनानुभवों को कविता में ढाला।

कविता के अलावा रघुवीर सहाय ने कहानी, निबंध और अनुवाद के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कहानी संकलनों में सीढ़ियों पर धूप में, रास्ता इधर से है और जो आदमी हम बना रहे हैं शामिल हैं। उनके निबंध-संग्रहों में दिल्ली मेरा परदेस, लिखने का कारण, ऊबे हुए सुखी, वे और नहीं होंगे जो मारे जाएंगे और भंवर लहरें और तरंग शामिल हैं।

उनके प्रमुख काव्य-संग्रहों में दूसरा सप्तक (1951), सीढ़ियों पर धूप में (1960), आत्महत्या के विरुद्ध (1967), हंसो, हंसो जल्दी हंसो (1975), लोग भूल गए हैं (1982), कुछ पते कुछ चिट्ठियां (1989) और एक समय था (1994) शामिल हैं। कविता-संग्रह लोग भूल गए हैं के लिए उन्हें 1984 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला। वर्ष 2000 में प्रकाशित छह खंडों की रघुवीर सहाय रचनावली में उनकी लगभग सभी कृतियां संकलित हैं।

उनकी कविताएं, अखबारवाला, अगर कहीं मैं तोता होता, अरे, अब ऐसी कविता लिखो, आओ, जल भरे बर्तन में, आनेवाला कल, आनेवाला खतरा और इतने शब्द कहां हैं, आज भी पाठक को सोचने के लिए विवश करती हैं।

रघुवीर सहाय ने समाज को दिखाया कि खबर और कविता के बीच की दूरी मिटाई जा सकती है। सहाय की कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस दौर में थी।

Point of View

बल्कि उन्होंने समाज में मानवीयता की पीड़ा को उजागर किया है। उनकी कविताएं आज भी प्रासंगिक हैं, जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं। यह एक ऐसा अनूठा दृष्टिकोण है जो साहित्य को आम जनजीवन से जोड़ता है।
NationPress
29/12/2025

Frequently Asked Questions

रघुवीर सहाय का योगदान क्या था?
रघुवीर सहाय ने कविता और पत्रकारिता में महत्वपूर्ण योगदान दिया, उनकी रचनाएं समाज की पीड़ा को उजागर करती हैं।
उनकी प्रमुख कृतियां कौन सी हैं?
उनकी प्रमुख कृतियों में 'दूसरा सप्तक', 'आत्महत्या के विरुद्ध', 'लोग भूल गए हैं' शामिल हैं।
रघुवीर सहाय का सौंदर्यशास्त्र क्या था?
उनका सौंदर्यशास्त्र खबरों का सौंदर्यशास्त्र था, जिसमें भाषा पारदर्शी और संक्षेप थी।
क्या रघुवीर सहाय का काम आज भी प्रासंगिक है?
हां, उनकी कविताएं आज भी समाज में महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करती हैं।
क्या उन्होंने पत्रकारिता में भी काम किया?
जी हां, रघुवीर सहाय ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया और कई पत्रिकाओं का संपादन किया।
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