क्या केंद्र सरकार 2030 तक भारत में 300 बिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था बनाने के लिए तैयार है?

सारांश
Key Takeaways
- भारत का लक्ष्य 300 बिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था बनाना है।
- बायोई3 नीति का उद्देश्य टिकाऊ जैव विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
- जैव प्रौद्योगिकी में 11,000 स्टार्टअप्स की वृद्धि हुई है।
- हर भारतीय को जैव अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा माना गया है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 छात्रों को लचीलापन प्रदान करती है।
नई दिल्ली, 7 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सोमवार को विश्व जैव उत्पाद दिवस के अवसर पर कहा कि केंद्र सरकार का लक्ष्य 2030 तक भारत में 300 बिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था स्थापित करना है।
उन्होंने भारत के जैव प्रौद्योगिकी मिशन में व्यापक सार्वजनिक समझ और समावेशी भागीदारी पर जोर देते हुए कहा कि हर भारतीय देश की जैव अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भागीदार है।
केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र एक दशक पहले लगभग 50 स्टार्टअप से बढ़कर आज लगभग 11,000 हो गया है। यह वृद्धि नीतियों के समर्थन और संस्थागत भागीदारी के माध्यम से संभव हुई है।
हाल ही में लॉन्च की गई बायोई3 नीति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक विकास और समानता को ध्यान में रखते हुए जैव अर्थव्यवस्था के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत को टिकाऊ जैव विनिर्माण में एक अग्रणी स्थान पर लाने का आधार तैयार करती है।
उन्होंने कहा, "जैव उत्पाद अब केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं रह गए हैं। बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग से लेकर पर्यावरण के अनुकूल व्यक्तिगत देखभाल तक, ग्रामीण रोजगार और हरित नौकरियों में यह आजीविका के साधन बन रहे हैं।"
सिंह ने यह भी कहा कि भविष्य की औद्योगिक क्रांति जैव अर्थव्यवस्था द्वारा संचालित होगी और उनका मानना है कि भारत इसमें एक प्रमुख भूमिका निभाएगा।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को एक गेम-चेंजर बताया, जो छात्रों को रुचि के विषयों को लचीलेपन के साथ आगे बढ़ाने की अनुमति देगा।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव और बीआईआरएसी के अध्यक्ष डॉ. राजेश एस. गोखले ने भी बायोई3 नीति को लागू करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में बताया।
इन कदमों में पायलट विनिर्माण, क्षेत्र-विशिष्ट नवाचार मिशनों के लिए समर्थन और अनुसंधान से लेकर बाजार तक की पाइपलाइन को मजबूत करना शामिल है।
उन्होंने स्केलेबल बायोटेक समाधान के लिए शिक्षाविदों, स्टार्टअप्स और उद्योगों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने में डीबीटी की भूमिका के बारे में भी चर्चा की।