क्या फरहान अख्तर, '120 बहादुर' के प्रोड्यूसर होते हुए भी किसी भी फैसले में हस्तक्षेप नहीं करते? : विवान भटेना
सारांश
Key Takeaways
- फरहान अख्तर ने फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के साथ-साथ सह-निर्माता की जिम्मेदारी भी संभाली।
- सेट पर उन्होंने कभी भी निर्माता के रूप में हस्तक्षेप नहीं किया।
- फिल्म का मुख्य फोकस भारतीय सैनिकों की बहादुरी और बलिदान पर है।
- निर्देशक रजनीश घई ने कहानी को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है।
- फरहान का मार्गदर्शन अन्य कलाकारों के लिए प्रेरणादायक रहा।
मुंबई, 23 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। 1962 के रेजांग ला युद्ध पर आधारित फरहान अख्तर की चर्चित फिल्म 120 बहादुर 21 नवंबर को सिनेमा घरों में प्रदर्शित हुई। इस फिल्म में फरहान अख्तर ने मेजर शैतान सिंह भाटी की भूमिका निभाई और साथ ही सह-निर्माता के रूप में भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाया।
फिल्म में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाने वाले अभिनेता विवान भटेना ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में बताया कि सेट पर फरहान कभी भी निर्माता के रूप में नहीं आए।
उन्होंने अपने आप को एक अभिनेता के रूप में पूरी तरह से समर्पित रखा।
विवान ने कहा कि फरहान ने अपने किरदार को और भी मजबूती प्रदान करने के लिए निर्माता की जिम्मेदारियों को पीछे छोड़ दिया। उनकी प्राथमिकता हमेशा अभिनय रही और उन्होंने अन्य मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं किया।
विवान ने कहा, "टीम को लगा कि कहीं न कहीं फरहान का निर्माता पक्ष दिखाई देगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने सेट पर कभी भी किसी निर्णय में दखल नहीं दिया और न ही अनावश्यक सुझाव दिए। उन्होंने केवल अपने किरदार पर ध्यान केंद्रित किया और अपने हिस्से का काम बखूबी किया।"
उन्होंने आगे कहा, "फरहान ने हमेशा सही मार्गदर्शन दिया। वह यह नहीं बताते थे कि किसी सीन में क्या करना है, बल्कि यह बताते थे कि इसे महसूस कैसे किया जाए। यह तरीका अन्य कलाकारों के लिए बहुत सहायक साबित हुआ। फरहान की यही विशेषता उन्हें सेट पर खास बनाती है, क्योंकि एक बड़े नाम होने के बावजूद उन्होंने टीम के काम में बाधा नहीं डाली और हमेशा सहयोगी बने रहे।"
फिल्म की कहानी 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान लड़ी गई ऐतिहासिक रेजांग ला की लड़ाई पर आधारित है, जिसमें भारतीय सेना की 13 कुमाऊं रेजिमेंट के 120 वीर सैनिकों ने अद्वितीय साहस दिखाते हुए 3,000 चीनी सैनिकों का सामना किया, जिससे पूरी जंग का रुख बदल गया।
निर्देशक रजनीश घई ने इस कहानी को इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि दर्शक सैनिकों की बहादुरी, अनुशासन और बलिदान को गहराई से अनुभव करेंगे।