क्या झारखंड हाईकोर्ट ने रिम्स में रिक्त पदों पर चार हफ्ते में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया?

सारांश
Key Takeaways
- रिम्स में नियुक्ति प्रक्रिया को चार हफ्ते में शुरू करने का आदेश।
- स्वास्थ्य सचिव और निदेशक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश।
- कोर्ट ने उपकरणों की खरीद पर सवाल उठाए।
- जनहित याचिका ने रिम्स की स्थिति को उजागर किया।
रांची, 6 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल रिम्स (राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) में चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों के रिक्त पदों पर चार हफ्ते में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है।
चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने रिम्स में व्याप्त अव्यवस्था के संबंध में दाखिल जनहित याचिका पर बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और रिम्स के निदेशक से कई सवाल किए।
कोर्ट के आदेश के अनुसार, राज्य के स्वास्थ्य सचिव और रिम्स के निदेशक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया। अदालत ने स्वास्थ्य सचिव से पूछा कि जब सरकार रिम्स को समय-समय पर फंड देती है, तो उसका समुचित उपयोग क्यों नहीं हो रहा है? खर्च नहीं हुई राशि की मॉनिटरिंग और जवाबदेही तय क्यों नहीं की जाती?
इस पर सचिव ने कहा कि रिम्स एक स्वायत्तशासी संस्था है और संचालन समिति के निर्णयानुसार ही फंड का उपयोग होता है। कोर्ट ने निदेशक डॉ. राजकुमार से पूछा कि आपके योगदान के बाद अब तक सरकार से कितनी राशि मिली, उसमें से कितने उपकरण और मशीनें खरीदी गईं, कितना फंड वापस किया गया, और एमआरआई जैसी आवश्यक मशीनें अब तक क्यों नहीं खरीदी गई हैं?
उन्हें इन सभी बिंदुओं पर विस्तृत जानकारी 7 अगस्त तक शपथपत्र के माध्यम से देने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने उन्हें अगली सुनवाई के लिए भी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने को कहा।
सुनवाई के दौरान यह मामला भी उभरा कि कई डॉक्टर गैर-प्रैक्टिसिंग अलाउंस (एनपीए) ले रहे हैं, फिर भी निजी प्रैक्टिस में लगे हुए हैं। अदालत ने ऐसे डॉक्टरों की बायोमेट्रिक उपस्थिति रिपोर्ट मांगी है, और पूछा है कि अब तक इस पर क्या कार्रवाई की गई है या भविष्य में क्या योजना है।
यह जनहित याचिका ज्योति शर्मा द्वारा दायर की गई है, जिसमें रिम्स में लंबे समय से रिक्त पदों पर नियुक्ति न होने और आवश्यक चिकित्सीय उपकरणों की कमी का मुद्दा उठाया गया है।