क्या है कार्तिगाई दीपम का महत्व? प्रकाश का महापर्व
सारांश
Key Takeaways
- कार्तिगाई दीपम का पर्व जीवन में सुख और शांति लाने का प्रतीक है।
- भगवान मुरुगन की पूजा का महत्व इस दिन विशेष होता है।
- पौराणिक कथाएँ इस उत्सव को और भी खास बनाती हैं।
- तमिल संस्कृति में यह पर्व दीपावली के समान महत्वपूर्ण है।
- मंदिरों में विशेष अनुष्ठान और भजन-कीर्तन आयोजित होते हैं।
नई दिल्ली, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि गुरुवार को मासिक कार्तिगाई दीपम है। यह त्योहार विशेष रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका और तमिल बहुल क्षेत्रों में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और वैभव की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण, कूर्म पुराण और स्कंद पुराण में प्रचलित एक कथा के अनुसार, सृष्टि की शुरुआत में ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ था। भगवान शिव अनंत ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। आकाशवाणी हुई, जो इसका आदि या अंत ढूंढ लेगा, वही सर्वश्रेष्ठ होगा।
भगवान विष्णु ने वराह अवतार में पाताल लोक जाने का प्रयास किया, जबकि ब्रह्मा जी हंस रूप में आकाश की ऊंचाइयों में उड़ने लगे, लेकिन दोनों इस कार्य में असफल रहे। अंततः विष्णु भगवान सत्य स्वीकार कर लौट आए और ब्रह्मा जी ने केतकी फूल से झूठी गवाही दी कि उन्होंने अंत देख लिया।
शिवजी ने क्रोधित होकर प्रचंड रूप धारण किया, जिससे पूरी धरती में हाहाकार मच गया। देवताओं द्वारा क्षमा याचना करने पर यह ज्योति तिरुमल्लई पर्वत पर अरुणाचलेश्व लिंग के रूप में स्थापित हो गई। इसी से शिवारात्रि का पर्व मनाने की परंपरा भी शुरू हुई। इस कथा से कार्तिगाई दीपम के दीपकों का महत्व जुड़ा है, जो शिव की अनंत ज्योति का प्रतीक हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान मुरुगन को छह कृतिका नक्षत्रों की देवियों ने छह अलग-अलग शिशुओं के रूप में पाला। देवी पार्वती ने इन रूपों को एक सुंदर बालक में बदल दिया, जो मुरुगन बने, जो शक्ति और विजय के देवता हैं।
इसके बाद से ही तमिल समुदाय में कार्तिगाई उत्सव मनाया जाने लगा। इस दिन दीप जलाकर मुरुगन की पूजा की जाती है, जो जीवन की बाधाओं को दूर करने वाली बताई जाती है।
तमिल संस्कृति में यह पर्व दीपावली की तरह है। मंदिरों में विशेष अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण होता है।