क्या राहुल गांधी के लिए रिश्तों का महत्व सिर्फ वोट तक सीमित है? : दिनेश प्रताप सिंह

सारांश
Key Takeaways
- रिश्तों का महत्व केवल राजनीतिक लाभ तक सीमित नहीं होना चाहिए।
- फिरोज गांधी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि का महत्व।
- राहुल गांधी के लिए परिवार के रिश्ते की पहचान।
- राजनीतिक बयानबाजी में सांस्कृतिक संदर्भ का महत्व।
- रायबरेली के लोगों की उम्मीदें और विश्वास।
रायबरेली, 9 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। यूपी सरकार में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिनेश प्रताप सिंह ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने फिरोज गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में दादा-पोते का संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन राहुल गांधी के लिए रिश्तों का महत्व केवल वोट तक ही सीमित है।
दिनेश प्रताप सिंह ने फिरोज गांधी की पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर कर राहुल गांधी से सवाल उठाया।
उन्होंने लिखा, "हमारी संस्कृति में पोते के लिए रिश्तों में दादा सबसे महत्वपूर्ण संबंध होता है, लेकिन धन्य हैं रायबरेली के सांसद राहुल गांधी, जिनके लिए रिश्तों का महत्व वोट निर्धारित करता है। फिरोज गांधी की पुण्यतिथि है। 8 सितंबर 1960 को उनका निधन हुआ था। वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पिता और राहुल गांधी के दादाजी थे। स्वयं को जनेऊधारी ब्राह्मण कहने वाले राहुल गांधी पितृपक्ष में भी अपने दादा को याद नहीं कर रहे हैं, बल्कि मलेशिया में छिपकर आनंद ले रहे हैं। राहुल गांधी दादा का नाम अपने साथ नहीं जोड़ सकते और वे भारत जोड़ने की बात करते हैं।"
यूपी सरकार में राज्यमंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने अपनी पोस्ट पर सफाई दी। उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "मैं राहुल और सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ चुका हूं। रायबरेली के जिन लोगों ने हमें वोट दिया है, उनकी आशा, विश्वास और भरोसे के साथ काम करना चाहिए। इसलिए मैं अपने दायित्वों का निभा रहा हूं। यह स्वाभाविक है कि राहुल गांधी अपने पिता और दादी की पुण्यतिथि पर पुष्प अर्पित करने जाते हैं, यह अच्छी बात है। लेकिन सवाल यह उठता है कि वह अपने पिता और दादी को पुष्प अर्पित करते हैं, लेकिन दादा की पुण्यतिथि पर उन्हें याद नहीं करते हैं।"
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के आगामी रायबरेली दौरे पर मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने कहा, "यदि लोग राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर विश्वास करते हैं, तो वे प्रियंका को थोड़ा अधिक ग्लैमरस मानते हैं। एआईसीसी महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी के रूप में प्रियंका गांधी के 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' के नारे के साथ गांव की गलियों में घूमी, लेकिन इसका रायबरेली या उत्तर प्रदेश में कहीं और कोई असर नहीं हुआ। इसी प्रकार, राहुल गांधी के प्रयासों और अभियानों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। बिहार में 'वोटर अधिकार यात्रा' के बाद यूपी के सीतापुर में कांग्रेस ने एक बड़ी रैली का आयोजन किया, अब राहुल गांधी दो दिन के दौरे पर रायबरेली आ रहे हैं। मेरा मानना है कि गांधी-नेहरू के कारण उन्हें उत्तर प्रदेश में न तो पहले कुछ मिला है और न आगे मिलेगा।