क्या आप जानते हैं श्री हरिनारायण का ऐसा मंदिर, जहां 108 धाराओं में स्नान से मिलती है मोक्ष?

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क्या आप जानते हैं श्री हरिनारायण का ऐसा मंदिर, जहां 108 धाराओं में स्नान से मिलती है मोक्ष?

सारांश

श्री हरिनारायण का मुक्तिनाथ मंदिर 108 धाराओं से भरा है, जहां स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। यह अद्वितीय स्थल हिंदू और बौद्ध दोनों के लिए पवित्र है। यहां भक्त जन्माष्टमी पर विशेष पूजा करते हैं। जानिए इस मंदिर के अनोखे रहस्यों के बारे में।

Key Takeaways

  • मुक्तिनाथ मंदिर 108 धाराओं से भरा है, जहां स्नान का महत्व है।
  • यह स्थान हिंदू और बौद्ध दोनों के लिए पवित्र है।
  • जन्माष्टमी पर यहाँ विशेष पूजा होती है।
  • मंदिर की वास्तुकला पैगोडा शैली की है।
  • भक्त यहाँ आकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

नई दिल्ली, 12 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। 16 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाएगा, जिसकी तैयारियाँ पूरे देश में जोर-शोर से चल रही हैं। देश और विदेश में लीलाधर के कई मंदिर हैं, जो अध्यात्म की अद्भुत कहानियाँ प्रस्तुत करते हैं, जिसमें भक्तों की गहरी आस्था और विश्वास झलकता है। नेपाल के मुस्तांग जिले में स्थित श्री हरि नारायण मुक्तिनाथ मंदिर भी ऐसा ही एक अद्वितीय स्थल है, जहां 108 जल धाराओं में स्नान करने से पापों से मुक्ति और हरि की कृपा प्राप्त होती है। यह वैष्णव समुदाय का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जिसे मोक्ष का स्थान माना जाता है।

इस मंदिर की पवित्रता केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण स्थल है। जन्माष्टमी के अवसर पर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ होती है।

मुक्तिनाथ का अर्थ है 'मोक्ष का नाथ' या मुक्ति देने वाले भगवान। यह मंदिर हिमालय की गोद में 3,710 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और भगवान नारायण को समर्पित है, जिनका अवतार कृष्ण है। पुराणों के अनुसार, यह स्थान गंडकी नदी से जुड़ा है, जहां शालिग्राम शिलाएं पाई जाती हैं। इन शिलाओं को प्रकृति का जीवंत पत्थर माना जाता है और इन्हें पूजा के लिए कहीं भी स्थापित किया जा सकता है।

जन्माष्टमी के अवसर पर भक्त यहाँ कृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण करते हैं। मुक्तिनाथ मंदिर का इतिहास पुराणों से संबंधित है, जो 300-1000 ईस्वी के बीच लिखे गए थे। इसे दुनिया के सबसे पुराने विष्णु मंदिरों में से एक माना जाता है। इसके साथ ही, यह 24 तांत्रिक स्थानों में से एक भी है।

मुक्ति क्षेत्र का उल्लेख रामायण, बराह पुराण और स्कंद पुराण जैसे हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था। नारायण की मूर्ति 16वीं शताब्दी की मानी जाती है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने यहाँ तपस्या की और भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए। दूसरी कथा गुरु रिनपोछे से जुड़ी है, जो तिब्बती बुद्धिज्म के संस्थापक थे। उन्होंने तिब्बत जाते समय यहाँ ध्यान किया, जिससे मंदिर को बौद्ध महत्व भी मिला।

आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में यहाँ का दौरा किया और इसे आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र माना। यहाँ भगवान श्रीहरि विष्णु मोक्षदाता के रूप में विराजमान हैं। जन्माष्टमी और अन्य धार्मिक अवसरों पर भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। यहाँ प्रवेश से पहले गौमुख से निकलती 108 धाराएं प्रवाहित होती हैं, जिनके बगल में दो जल कुंड हैं। इन धाराओं में स्नान करने से भक्त अपने पापों से मुक्त होते हैं।

मंदिर की वास्तुकला पैगोडा शैली की है, जिसमें मुख्य मूर्ति भगवान विष्णु की है और साथ में माता लक्ष्मी तथा माता सरस्वती भी विराजमान हैं।

यहाँ की 108 धाराएं गौमुखी गंगा से निकलती हैं, जो अत्यंत शीतल हैं। भक्त इन धाराओं में स्नान कर मोक्ष की कामना श्रीहरिनारायण से करते हैं। बौद्ध इसे 'चुमिग ग्यात्सा' के नाम से जानते हैं, जिसका अर्थ है 108 झरने।

जन्माष्टमी के दौरान यहाँ विशेष पूजा होती है, जहां कृष्ण की आरती और भजन गाए जाते हैं। भक्तों का मानना है कि इस पर्व पर यहाँ स्नान करने से सुख-शांति और परिवार में समृद्धि का वास होता है।

Point of View

यह स्पष्ट है कि मुक्तिनाथ न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर भी आस्था का एक केंद्र है। यहां आने वाले भक्तों की आस्था और विश्वास इस स्थान को अद्वितीय बनाते हैं।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

मुक्तिनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?
मुक्तिनाथ मंदिर नेपाल के मुस्तांग जिले में स्थित है।
यहां स्नान करने से क्या लाभ होता है?
यहां स्नान करने से भक्त पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
जन्माष्टमी पर यहाँ क्या विशेष होता है?
जन्माष्टमी पर यहाँ विशेष पूजा, आरती और भजन गाए जाते हैं।
क्या यह मंदिर बौद्ध धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण है?
हाँ, यह मंदिर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल है।
मंदिर की वास्तुकला कैसी है?
यहाँ की वास्तुकला पैगोडा शैली की है और यह तीन मंजिलों में विभाजित है।