क्या मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ में बिना हिंसा दी जाती है पशु बलि?

सारांश
Key Takeaways
- मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ में बलि दी जाती है बिना खून बहाए।
- यहां सात्विक बलि की परंपरा का पालन होता है।
- मंदिर का इतिहास 5वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है।
- बकरे को बेहोश करने की प्रक्रिया होती है, लेकिन हिंसा नहीं की जाती।
- मंदिर में पंचमुखी शिव भी विराजमान हैं।
नई दिल्ली, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। शारदीय नवरात्र का आज सातवां दिन है और कल देशभर में कन्या पूजन होगा। सप्तमी से ही देश के कुछ हिस्सों में मां काली और मां के रौद्र रूपों पर पशु बलि देना शुरू हो जाता है, लेकिन बिहार के कैमूर जिले में स्थित 51 शक्तिपीठ में से एक मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ में अनोखे तरीके से बलि दी जाती है।
इसकी विशेषता यह है कि बिना खून बहाए इस प्रथा का पालन किया जाता है। मान्यता है कि बलि देने से मां प्रसन्न होती हैं और मनोकामना को पूरा करती हैं।
मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ पंवरा पहाड़ी के शिखर पर स्थित है और भक्त पहाड़ से गुजरकर मां भवानी के दर्शन करते हैं। इस मंदिर में सात्विक बलि की परंपरा का पालन होता आया है।
यहां बकरे को मां भवानी के सामने रखा जाता है, फिर पंडित अक्षत और रोली से कुछ मंत्र पढ़कर बकरे पर पानी की छींटे मारते हैं, जिससे बकरा बेहोश हो जाता है। इसे ही मंदिर में बलि माना जाता है।
कुछ देर बाद जब बकरा होश में आ जाता है तो उसे छोड़ दिया जाता है। मंदिर में बकरे या किसी भी पशु के साथ हिंसा नहीं की जाती।
मां मुंडेश्वरी मंदिर में मां का आशीर्वाद पाने के लिए नारियल और लाल चुनरी चढ़ाने की परंपरा है, लेकिन किसी मनोकामना के लिए पशु को बिना दर्द दिए माता के चरणों में समर्पित किया जाता है।
कहा जाता है कि मां ने राक्षस मुंड को समाप्त करने के लिए अवतार लिया और उसका वध किया, जिसके कारण भक्तों के बीच उन्हें मां मुंडेश्वरी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि यह मंदिर 5वीं शताब्दी में स्थापित हुआ था। मंदिर के प्रांगण से मां के दर्शन करने के लिए सीढ़ियों का सफर पूरा करना पड़ता है।
इसके अतिरिक्त, मंदिर को मुगल इतिहास से भी जोड़ा गया है। कहा जाता है कि पहले यह मंदिर बहुत बड़ा था, लेकिन मुगलों के आक्रमण के पश्चात मंदिर का कुछ हिस्सा टूट गया। इस मंदिर में मां भगवती अकेली नहीं हैं, बल्कि मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिव भी विराजमान हैं।