क्या नेचुरोपैथी की जड़ें भारतीय चिकित्सा पद्धति से जुड़ी हैं?

सारांश
Key Takeaways
- नेचुरोपैथी की जड़ें भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में हैं।
- जल चिकित्सा और भाप का उपयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है।
- भारत में पारंपरिक चिकित्सा का महत्व और योगदान अद्वितीय है।
- हर्बल स्टीम और ऑयल मसाज जैसे उपचार आज भी प्रचलित हैं।
- वैश्विक स्तर पर नेचुरोपैथी की स्वीकार्यता बढ़ रही है।
पुणे, १३ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरोपैथी ने एक महत्वपूर्ण शोध में यह सिद्ध किया है कि हाइड्रोथेरेपी (जल चिकित्सा) और स्टीम बाथ (वाष्प स्नान) जैसी विधियाँ भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों से गहराई से जुड़ी हुई हैं। ये वही तकनीकें हैं जिन्हें आज वैश्विक स्तर पर नेचुरोपैथी (प्राकृतिक चिकित्सा) के नाम से अपनाया जा रहा है।
इस शोध में बताया गया है कि प्राचीन भारत में आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा में जल और भाप का उपयोग कई रोगों के उपचार में किया जाता था। चाहे वो गर्म पानी से स्नान करना हो, ठंडी पट्टियाँ लगाना, या भाप का उपयोग करना, ये सभी भारत की पारंपरिक चिकित्सा का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। इसे केवल शरीर की सफाई नहीं, बल्कि एक गहरी चिकित्सा प्रक्रिया माना जाता था।
आज जब यूरोप और अमेरिका में हाइड्रोथेरेपी को एक आधुनिक चिकित्सा पद्धति के रूप में देखा जा रहा है, तब इसकी नींव भारत में पहले ही रखी जा चुकी थी। जैसे कि स्वेदन (भाप स्नान), जो आयुर्वेद का एक प्राचीन हिस्सा है, इसका उद्देश्य शरीर के विषाक्त तत्वों को पसीने के माध्यम से निकालना होता है। इसी प्रकार, यूनानी पद्धति में भी गर्म पानी और भाप के उपचार के तरीकों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
शोध में यह भी दर्शाया गया है कि आज जो यूरोप और अमेरिका में नेचुरोपैथी को आधुनिक विज्ञान मानते हैं, उसकी असली प्रेरणा भारतीय परंपराओं से ही प्राप्त हुई है। हालांकि, नेचुरोपैथी को एक अलग चिकित्सा प्रणाली के रूप में जर्मनी से शुरू माना जाता है, जो १९वीं सदी में अमेरिका के माध्यम से भारत पहुंची, लेकिन भारत में इसे कभी विदेशी नहीं समझा गया। इसके मूल सिद्धांत जैसे पंचमहाभूत, उपवास, शाकाहार, ताजी हवा और व्यायाम पहले से ही भारतीय जीवनशैली में शामिल थे।
आज भी हम देखते हैं कि हर्बल स्टीम, ऑयल मसाज, उपवास, योग और प्राकृतिक उपचार जैसी विधियाँ भारत में प्रचलित हैं और इन्हें अब विश्व स्तर पर वेलनेस थेरेपी के नाम से अपनाया जा रहा है। यह शोध हमें याद दिलाता है कि नेचुरोपैथी की वैश्विक यात्रा भारत की परंपराओं से ही प्रारंभ हुई थी और आज भी भारत का योगदान इस दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण है।