क्या न्यायिक नियुक्तियों पर उठे सवालों का समाधान होगा? एससीबीए ने सीजेआई को लिखा पत्र

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क्या न्यायिक नियुक्तियों पर उठे सवालों का समाधान होगा? एससीबीए ने सीजेआई को लिखा पत्र

सारांश

जुड़ें हमारे साथ इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर, जब सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता की मांग की है। क्या यह कदम न्यायपालिका में सुधार लाएगा?

Key Takeaways

  • न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता की आवश्यकता है।
  • कोलेजियम प्रणाली में खामियाँ हैं जो सुधार की मांग करती हैं।
  • महिलाओं का प्रतिनिधित्व न्यायपालिका में कम है।
  • नियुक्तियों के लिए आवेदन-आधारित प्रक्रिया लागू करनी चाहिए।
  • सुधारों की प्रक्रिया को अब और टालना नहीं चाहिए।

नई दिल्ली, २४ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत की न्यायपालिका में नियुक्तियों को लेकर एक बार फिर बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को पत्र लिखकर न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता, योग्यता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की मांग की है।

एससीबीए ने अपने पत्र में मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) को शीघ्र अंतिम रूप देने की आवश्यकता पर जोर दिया है। संगठन का कहना है कि यदि न्यायपालिका को वास्तव में स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाना है, तो सबसे पहले उसकी नियुक्ति प्रक्रिया को व्यवस्थित, पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना चाहिए।

एससीबीए ने मौजूदा कोलेजियम प्रणाली की कई खामियों की ओर इशारा किया है। पत्र में लिखा गया है कि यह प्रणाली, जो शुरू में न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी, अब अपने ही बोझ तले दब गई है।

आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट बार के प्रतिभाशाली वकीलों को जानबूझकर उनके गृह राज्य के हाईकोर्ट में न्यायाधीश बनने से वंचित किया जा रहा है, जबकि वे राष्ट्रीय कानून व्यवस्था और न्यायिक दृष्टिकोण में काफी अनुभव रखते हैं। यह सीधे-सीधे मेधा आधारित चयन प्रणाली के मूल सिद्धांत के खिलाफ है।

एससीबीए ने यह भी आरोप लगाया कि न्यायपालिका में महिलाओं और विविध पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व बेहद कम है। फरवरी २०२४ तक, हाईकोर्टों में मात्र ९.५ प्रतिशत और सुप्रीम कोर्ट में केवल २.९४ प्रतिशत महिला न्यायाधीश ही हैं।

पत्र में लिखा गया है कि यह आंकड़े न्यायिक नियुक्तियों में न केवल असंतुलन दिखाते हैं, बल्कि यह भी सिद्ध करते हैं कि अब तक नियुक्तियों का आधार निष्पक्षता के बजाय अनौपचारिक नेटवर्क और सिफारिशों पर आधारित रहा है।

पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि कोर्ट की सफलता के पीछे अक्सर ब्रिफिंग वकीलों और जूनियरों का बड़ा योगदान होता है, लेकिन न्यायिक पदों की नियुक्ति में केवल बहस करने वाले वरिष्ठ वकीलों को ही प्राथमिकता दी जाती है। यह प्रक्रिया न्यायिक क्षमता के असली पैमाने को नकारती है।

एससीबीए ने एमओपी को प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए कई अहम सुझाव भी दिए हैं। उम्मीदवारों और रिक्तियों से संबंधित आंकड़ों को संरक्षित करने और संस्थागत स्मृति को बनाए रखने के लिए प्रत्येक उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में एक स्थायी सचिवालय स्थापित करने की बात कही गई है।

सुझाव में कहा गया है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक पारदर्शी, आवेदन-आधारित प्रक्रिया लागू करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि प्रत्येक योग्य उम्मीदवार को उचित अवसर मिले।

उम्मीदवारों के मूल्यांकन के लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड प्रकाशित करने की बात कही गई है, जैसे आयु, कानूनी अनुभव, प्रकाशित निर्णय और निःशुल्क कार्य।

एससीबीए ने यह भी बताया कि कुछ समय पहले 'न्यायाधीशों की नियुक्ति सुविधा अधिनियम' नाम से एक प्रस्तावित कानून का मसौदा बनाकर सरकार को सौंपा गया था, जिसे अब फिर से विचार में लिया जाना चाहिए।

पत्र के अंत में एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने लिखा, "न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और योग्यता का पुनर्स्थापन ही जनता के विश्वास को लौटाने का एकमात्र रास्ता है।" उन्होंने आग्रह किया कि कोलेजियम और सरकार मिलकर एमओपी को अंतिम रूप दें और सुधारों की प्रक्रिया को अब और टालने की कोई गुंजाइश नहीं है।

Point of View

यह स्पष्ट है कि न्यायपालिका में नियुक्तियों की प्रक्रिया को सुधारने की आवश्यकता है। पारदर्शिता और योग्यता का पुनर्स्थापन न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करेगा, बल्कि जन विश्वास को भी बहाल करेगा।
NationPress
26/12/2025

Frequently Asked Questions

एससीबीए ने किसे पत्र लिखा?
एससीबीए ने भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को पत्र लिखा।
नियुक्तियों में पारदर्शिता की मांग क्यों की गई?
नियुक्तियों में पारदर्शिता की मांग न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए की गई।
क्या वर्तमान कोलेजियम प्रणाली में खामियाँ हैं?
हां, एससीबीए ने मौजूदा कोलेजियम प्रणाली की कई खामियों की ओर इशारा किया।
महिलाओं का न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व कितना है?
फरवरी २०२४ तक, हाईकोर्टों में ९.५ प्रतिशत और सुप्रीम कोर्ट में २.९४ प्रतिशत महिला न्यायाधीश हैं।
सुधारों की प्रक्रिया को टालने की कोई गुंजाइश है?
नहीं, एससीबीए अध्यक्ष ने सुधारों की प्रक्रिया को अब और टालने की कोई गुंजाइश नहीं बताई।
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