क्या उषा खन्ना ने सपनों की जिद से संगीत का जादू रचा? बॉलीवुड की एकमात्र सोलो महिला संगीतकार की अनकही कहानी

सारांश
Key Takeaways
- उषा खन्ना ने संगीत में अपनी पहचान बनाई।
- महिलाओं के लिए संगीत निर्देशन में संघर्ष का सामना किया।
- उन्होंने कई सदाबहार गीत दिए।
- उषा खन्ना का संगीत आज भी प्रासंगिक है।
- उनकी यात्रा प्रेरणा स्रोत है।
मुंबई, 6 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। जब हम महिला संगीतकारों की बात करते हैं, तो उषा खन्ना का नाम अवश्य लिया जाता है। उन्होंने उस समय में अपनी विशेष पहचान बनाई, जब संगीत की दुनिया में पुरुषों का ही राज था। अपनी मेहनत और कौशल के बल पर, उन्होंने फिल्मी संगीत में एक अनूठी उपलब्धि हासिल की। वे एकमात्र ऐसी महिला संगीतकार बन गईं, जिन्होंने इस क्षेत्र में इतनी लंबी और सफल यात्रा तय की।
उषा खन्ना का जन्म 7 अक्टूबर 1941 को ग्वालियर में हुआ। ग्वालियर एक समृद्ध संगीत परंपरा के लिए जाना जाता है, जहां महान संगीतज्ञ तानसेन की विरासत आज भी जीवित है। ऐसे माहौल में पली-बढ़ी उषा को बचपन से ही संगीत की धुनें सुनने को मिलीं। उनके पिता, मनोहर खन्ना, एक गजलकार थे और फिल्मों के लिए गजलें लिखते थे। इस कारण उषा का घर हमेशा संगीत से भरा रहता था। जब वे छोटी थीं, उनके पिता के काम के चलते वे मुंबई आईं, जहां उन्होंने जद्दन बाई और सरस्वती देवी जैसे महान गुरुओं से संगीत की शिक्षा ली।
उषा खन्ना ने अपने करियर की शुरुआत एक गायिका के रूप में की, लेकिन जल्दी ही उनका रुझान संगीत रचना की ओर हो गया। उस समय, जब हिंदी फिल्म उद्योग में प्रमुख पुरुष संगीतकारों की प्रचुरता थी, तब एक महिला के लिए संगीत निर्देशक बनना सरल नहीं था। लेकिन उषा ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने प्रसिद्ध निर्माता सशधर मुखर्जी के सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। मुखर्जी ने उन्हें प्रारंभ में गायिका के रूप में अवसर दिया, लेकिन जब उन्होंने अपने द्वारा रचित गीत प्रस्तुत किए, तो उनकी धुनें इतनी प्रभावशाली थीं कि मुखर्जी ने उन्हें 1959 की सुपरहिट फिल्म दिल देके देखो का संगीत बनाने का मौका दिया।
यह फिल्म उषा खन्ना के करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। उस समय के प्रसिद्ध अभिनेता शम्मी कपूर भी इस फिल्म का हिस्सा थे, जिन्होंने आमतौर पर शंकर-जयकिशन जैसे बड़े संगीतकारों के साथ काम करना पसंद किया, लेकिन उन्होंने उषा की धुनों को स्वीकार किया और उनकी सराहना की। धीरे-धीरे उषा खन्ना ने अपने संगीत से सभी को प्रभावित किया और लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, और किशोर कुमार जैसे दिग्गज गायकों के साथ काम किया।
उषा खन्ना की खासियत यह थी कि वे हर प्रकार के गीतों में माहिर थीं। चाहे वह रोमांटिक गाना हो, दुखभरा गीत हो या चुलबुले लोकगीत, उन्होंने हर अंदाज में अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने हम हिंदुस्तानी के लिए छोड़ों कल की बातें कल की बात पुरानी, साजन बिना सुहागन के लिए मधुबन खुशबू देता है, सौतन के लिए चाय पे बुलाया है, हवस के लिए तेरी गलियों में रखेंगे कदम, और दादा के लिए दिल के टुकड़े-टुकड़े जैसे गानों में यादगार संगीत दिया। उनके गीत आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।
फिल्मी दुनिया में उनका सफर आसान नहीं था। एक महिला संगीतकार के नाते उन्हें कई बार संघर्षों का सामना करना पड़ा। बड़े बजट की फिल्में आमतौर पर पुरुष संगीतकारों को ही मिलती थीं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने छोटी और मध्यम बजट की फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया, और कई बार उनका संगीत इतना शानदार रहा कि भले ही फिल्में कम जानी गईं, लेकिन उनके गीत सदाबहार बन गए।
उषा खन्ना को उनके काम के लिए कई बार सम्मानित किया गया। उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। उन्होंने अपने करियर में सैकड़ों गीत दिए, जो आज भी रेडियो और समारोहों में गाए जाते हैं। उनकी संगीत यात्रा लगभग छह दशकों तक चली, जो किसी भी महिला संगीतकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।