क्या वाराणसी में महानवमी पर मां सिद्धिदात्री के दर्शन के लिए श्रद्धालु उमड़े?

सारांश
Key Takeaways
- महानवमी पर मां सिद्धिदात्री के दर्शन का महत्व।
- भक्तों की भारी भीड़ और जयकारे से गूंजता मंदिर।
- पूजा में शामिल सामग्री और पारंपरिक रीति-रिवाज।
- मां सिद्धिदात्री की कृपा से मिलती है सिद्धि और शांति।
- धार्मिक मान्यताओं का महत्व और संस्कृति का संरक्षण।
वाराणसी, 1 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। महानवमी के अवसर पर मां सिद्धिदात्री के दर्शन के लिए वाराणसी में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ देखी गई। बुधवार सुबह से ही गोलघर के निकट सिद्धमाता गली में स्थित मंदिर में भक्तों की एक लंबी लाइन लगी रही। इस दौरान मंदिर परिसर 'जय माता दी' के जयकारों से गूंज उठा।
महानवमी के दिन माता के नौवें रूप सिद्धिदात्री की विशेष पूजा-अर्चना की गई। ब्रह्म मुहूर्त से पहले ही भक्त नारियल, गुड़हल की माला, लाल चुनरी और प्रसाद लेकर मंदिर पहुंचे। मंगला आरती के पश्चात जैसे ही मंदिर के कपाट खुले, वातावरण भक्ति और उत्साह से भरा हो गया। भक्तों ने मां सिद्धिदात्री से सिद्धि, सुख, शांति और सौभाग्य की प्रार्थना की।
मंदिर के महंत प्रेम शंकर ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "महानवमी का दिन मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर है। काशी में नौ दुर्गा की अलग-अलग मूर्तियां स्थापित हैं और यह मंदिर सिद्ध माता को समर्पित है।"
श्रद्धालु रमेश चंद्र जायसवाल ने कहा, "आज के दिन मां सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है और उनकी कृपा हमेशा अपने भक्तों पर बनी रहती है। माता की कृपा से जीवन में सुख-शांति आती है।"
श्रद्धालु इंद्रा ने कहा, "मां सिद्धिदात्री के दर्शन मात्र से मन को अद्भुत शांति मिलती है।"
वहीं, श्रद्धालु आशा ने कहा, "मैंने नौ दिन तक मां की पूजा की और आज कन्या-पूजन करुंगी। माता की पूजा से हर मनोकामना पूरी होती है। यह पर्व हम सभी के लिए खास है।"
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां सिद्धिदात्री भक्ति से प्रसन्न होकर श्रद्धालुओं पर अपनी कृपा बरसाती हैं।
शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान शिव को भी माता की कृपा से ही सभी सिद्धियां प्राप्त हुई थीं।
मां सिद्धिदात्री का पूजन न केवल भौतिक सुख-समृद्धि के लिए, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी किया जाता है।