क्या वासुदेव शरण अग्रवाल : भारत के अनमोल रत्न हैं, जिन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति को नया दृष्टिकोण दिया?

Click to start listening
क्या वासुदेव शरण अग्रवाल : भारत के अनमोल रत्न हैं, जिन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति को नया दृष्टिकोण दिया?

सारांश

डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल भारतीय साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में एक अद्वितीय व्यक्तित्व हैं। उनकी विद्वता और योगदान ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। जानिए उनके जीवन और कार्यों के बारे में।

Key Takeaways

  • भारतीय संस्कृति के लिए उनका योगदान अतुलनीय है।
  • उन्होंने पुरातत्व और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए।
  • उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं।
  • उन्होंने साहित्य में नई दिशा प्रदान की।
  • वे एक बहुआयामी विद्वान थे।

नई दिल्ली, 26 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारत की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और साहित्यिक धरोहर को वैश्विक मंच पर स्थापित करने वाले विद्वानों में डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का नाम शीर्ष स्थान पर है। 7 अगस्त, 1904 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के खेड़ा गांव में जन्मे वासुदेव शरण अग्रवाल ने भारतीय इतिहास, संस्कृति, कला, साहित्य और पुरातत्व के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनके पिता गोपीनाथ अग्रवाल और माता सीता देवी के संरक्षण में उनका बचपन लखनऊ में बीता, जहां से उनकी शैक्षिक यात्रा ने गति पकड़ी। साहित्य, कला और प्राचीन भारतीय ग्रंथों के प्रति उनकी गहरी रुचि ने उन्हें एक बहुआयामी विद्वान बनाया।

वासुदेव शरण अग्रवाल ने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1929 में एमए, 1941 में पीएचडी, और 1946 में डी.लिट् की उपाधियां प्राप्त कीं। उनके डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टरेट शोध का विषय पाणिनि की अष्टाध्यायी में निहित सांस्कृतिक विषय सामग्री थी, जिसे बाद में 1953 में "इंडिया एज नोन टू पाणिनि" के रूप में प्रकाशित किया गया। इस कृति ने पाणिनि के व्याकरण को भारतीय संस्कृति और इतिहास के अध्ययन के लिए एक आधारभूत स्रोत के रूप में स्थापित किया।

वासुदेव शरण अग्रवाल का कार्यक्षेत्र केवल शैक्षिक अनुसंधान तक सीमित नहीं था। उन्होंने 1931 में मथुरा पुरातत्व संग्रहालय के क्यूरेटर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और 1940 में लखनऊ के उत्तर प्रदेश राज्य संग्रहालय के निदेशक बने। 1946 में वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से जुड़े और नई दिल्ली के मध्य एशियाई पुरावस्तु संग्रहालय में कार्य किया। 1951 में वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कला और वास्तुकला विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए।

उनकी लेखनी ने साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए। 1956 में उनकी कृति "पद्मावत संजीवनी व्याख्या" को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह कृति मलिक मुहम्मद जायसी की रचना "पद्मावत" की गहन और सांस्कृतिक व्याख्या थी।

इसके अलावा, उनकी पुस्तकें जैसे "पाणिनिकालीन भारतवर्ष", "हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन", "देवी-माहात्म्य" और "भारतीय कला का इतिहास" ने भारतीय साहित्य और संस्कृति को नए दृष्टिकोण प्रदान किए।

वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा शैली सरल, सुगम और विद्वत्तापूर्ण थी। वे जटिल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विषयों को सामान्य पाठक तक पहुंचाने में सक्षम थे। उनकी रचनाओं में संस्कृत, हिंदी और प्राचीन भारतीय ग्रंथों का गहन अध्ययन झलकता था। उन्होंने "नागरी प्रचारिणी पत्रिका" के संपादक के रूप में भी योगदान दिया, जिससे हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में मदद मिली।

वासुदेव शरण अग्रवाल का निधन 26 जुलाई, 1966 को हुआ, लेकिन उनकी विद्वता और रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उनके कार्य ने भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन को नई दिशा दी। वे न केवल एक विद्वान, बल्कि एक कला-मर्मज्ञ, पुरातत्ववेत्ता, भाषाशास्त्री और साहित्यकार थे, जिन्होंने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया।

आज जब हम भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान की बात करते हैं तो वासुदेव शरण अग्रवाल जैसे विद्वानों का योगदान अविस्मरणीय है। उनकी रचनाएं और विचार हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं और भावी पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

Point of View

बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति को भी एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। उनका कार्य सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
NationPress
09/09/2025

Frequently Asked Questions

डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म कब हुआ?
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 को हुआ था।
उन्होंने कौन-कौन सी उपाधियाँ प्राप्त की?
उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1929 में एमए, 1941 में पीएचडी, और 1946 में डी.लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
उनका प्रमुख कार्य क्या था?
उनका प्रमुख कार्य पाणिनि की अष्टाध्यायी में सांस्कृतिक विषय सामग्री का अध्ययन था, जिसे उन्होंने "इंडिया एज नोन टू पाणिनि" के रूप में प्रकाशित किया।
उन्होंने किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
उन्हें 1956 में उनकी कृति "पद्मावत संजीवनी व्याख्या" के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उनका निधन कब हुआ?
उनका निधन 26 जुलाई, 1966 को हुआ।