क्या यूपीआई पेमेंट को भविष्य में वित्तीय रूप से सस्टेनेबल बनाना आवश्यक है?

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क्या यूपीआई पेमेंट को भविष्य में वित्तीय रूप से सस्टेनेबल बनाना आवश्यक है?

सारांश

आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने यूपीआई के भविष्य को लेकर एक महत्वपूर्ण विचार साझा किया है। उन्होंने संकेत दिया है कि मुफ्त डिजिटल लेनदेन का युग समाप्त हो सकता है और यूपीआई को वित्तीय रूप से सस्टेनेबल बनाने की आवश्यकता है। क्या यह हमारे वित्तीय भविष्य के लिए अच्छी खबर है?

Key Takeaways

  • यूपीआई को भविष्य में सस्टेनेबल बनाना आवश्यक है।
  • मुफ्त डिजिटल लेनदेन का युग समाप्त हो सकता है।
  • सरकार बैंकों को सब्सिडी देती है।
  • यूपीआई में लगभग ८५% डिजिटल लेनदेन होते हैं।
  • मर्चेंट डिस्काउंट रेट्स की नीति पर सवाल उठ रहे हैं।

मुंबई, २५ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को यह संकेत दिया कि यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के माध्यम से पूरी तरह से मुफ्त डिजिटल लेनदेन का युग हमेशा के लिए नहीं रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि भविष्य में यूपीआई इंटरफेस को वित्तीय रूप से सस्टेनेबल बनाया जाना चाहिए।

वर्तमान में यूपीआई सिस्टम यूजर्स के लिए निःशुल्क है और इसके पेमेंट्स इंफ्रास्ट्रक्चर को सपोर्ट करने के लिए सरकार बैंकों और अन्य हितधारकों को सब्सिडी देती है।

उन्होंने कहा, "लागत चुकानी होगी। किसी न किसी को तो लागत वहन करनी ही होगी।" आरबीआई गवर्नर ने आगे कहा, "भुगतान और पैसा जीवन रेखा हैं। हमें एक सार्वभौमिक रूप से कुशल प्रणाली की आवश्यकता है। फिलहाल कोई शुल्क नहीं है।"

उन्होंने स्पष्ट किया कि यूपीआई पेमेंट सिस्टम में बैंकों और अन्य हितधारकों को सरकार द्वारा सब्सिडी दी जा रही है। लेकिन, अंततः कुछ लागत चुकानी ही होगी।

उन्होंने कहा, "किसी भी महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर को फलदायी होना चाहिए।" आरबीआई गवर्नर ने जोर देकर कहा कि किसी भी सेवा के वास्तव में सस्टेनेबल होने के लिए उसकी लागत का भुगतान सामूहिक रूप से या यूजर्स द्वारा किया जाना चाहिए।

इस अभूतपूर्व पैमाने ने बैकएंड इंफ्रास्ट्रक्चर पर दबाव बढ़ा दिया है, जिसका अधिकांश हिस्सा बैंकों, पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर्स और एनपीसीआई द्वारा संचालित होता है।

सरकार द्वारा निर्धारित जीरो मर्चेंट डिस्काउंट रेट्स की नीति के कारण यूपीआई लेनदेन से कोई राजस्व प्राप्त नहीं होने के कारण, उद्योग जगत के दिग्गजों ने बार-बार इस मॉडल को वित्तीय रूप से अस्थिर बताया है।

मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) डिजिटल पेमेंट प्रोसेसिंग के लिए बैंकों द्वारा व्यापारियों से लिया जाने वाला एक शुल्क है, जो आमतौर पर लेनदेन मूल्य का १ प्रतिशत से ३ प्रतिशत तक होता है। दिसंबर २०१९ में सरकार द्वारा रुपे डेबिट कार्ड और भीम-यूपीआई लेनदेन पर छूट दी गई थी। यह स्पष्ट नहीं है कि एमडीआर को फिर से लागू किया जाएगा या यूजर्स को यूपीआई इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्च भी वहन करना होगा।

आरबीआई गवर्नर की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब यूपीआई ने वैश्विक भुगतान दिग्गज वीजा को पीछे छोड़ दिया है। भारत तेज भुगतान में वैश्विक अग्रणी बन गया है, क्योंकि यूपीआई ने जून में १८.३९ अरब लेनदेन के माध्यम से २४.०३ लाख करोड़ रुपए से अधिक के पेमेंट प्रोसेस किए

यूपीआई अब भारत में लगभग ८५ प्रतिशत डिजिटल लेनदेन और दुनिया भर में लगभग ५० प्रतिशत रियल-टाइम डिजिटल पेमेंट को संचालित करता है।

Point of View

यह स्पष्ट है कि यूपीआई जैसे महत्वपूर्ण पेमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर को सस्टेनेबल बनाना आवश्यक है। हालांकि वर्तमान में यह मुफ्त है, लेकिन भविष्य में इसकी लागत का भुगतान करना होगा। यूजर्स को दी जाने वाली सुविधाओं का दीर्घकालिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है।
NationPress
09/09/2025

Frequently Asked Questions

यूपीआई पेमेंट सिस्टम क्या है?
यूपीआई, या यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस, एक डिजिटल पेमेंट सिस्टम है जो बैंकों के बीच तत्काल पैसे के लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है।
क्या यूपीआई पेमेंट्स हमेशा मुफ्त रहेंगे?
आरबीआई गवर्नर ने संकेत दिया है कि यूपीआई पेमेंट्स का मुफ्त होना भविष्य में संभवतः समाप्त हो सकता है।
क्या यूपीआई को वित्तीय रूप से सस्टेनेबल बनाना जरूरी है?
जी हां, यूपीआई को भविष्य में सस्टेनेबल बनाने के लिए इसकी लागत का भुगतान आवश्यक होगा।
यूपीआई का मर्चेंट डिस्काउंट रेट क्या है?
मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) डिजिटल पेमेंट प्रोसेसिंग के लिए व्यापारियों से लिया जाने वाला शुल्क है।
यूपीआई का वैश्विक भुगतान में क्या स्थान है?
यूपीआई ने वीजा को पीछे छोड़ते हुए वैश्विक भुगतान में महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।